लेखक के अनुसार निंदक को दंड देने की आवश्यकता क्यों नहीं होती
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ऐसा निन्दक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करने वाले को कोई दंड देने की जरूरत नहीं है। वह निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है।
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