लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा
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लेखक को स्कूल कभी भी ऐसी जगह नहीं लगता था जहां खुशी से जाया जाए। स्कूल जाना उनके लिए एक सजा के सामान था। परंतु एक- दो अवसर ऐसे होते थे जब उसे स्कूल जाना अच्छा लगता था। पीटी मास्टर जब स्कूल में स्काउटिंग की परेड अभ्यास करवाते थे उस समय वह बच्चों के हाथों में नीली पीली झाड़ियां पकड़ा देते थे। मास्टर जी के वन, टू, ३ कहने पर बच्चे झंडे को ऊपर - नीचे , दाएं -बाएं करते थे।उस समय हवा में नहाती हुई झाड़ियां बच्चों को अच्छी लगती थी। उन्हें पहनने के लिए खाकी वर्दी और पोलीस किए जूते मिलते थे। गले में दो रंग का रुमाल पहनने को मिलता था। उस समय स्कूल के सभी बच्चे खुशी खुशी स्कूल जाते थे।
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