लेखक को इंजन के भीतर बैठने का अनुभव क्यों हो रहा था
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¿ लेखक को इंजन के भीतर बैठने का अनुभव क्यों हो रहा था ?
✎... लेखक जैसे ही बस में बैठा और बस का इंजन चालू हुआ तो बस के इंजन के शोर और कंपन से पूरी बस हिलने लगी। बस के इंजन का शोर पूरी बस में गूँज रहा था। बस की खिड़किओं के शीशे बुरी तरह हिल रहे थे। हालांकि बस के अधिकांश शीशे टूट चुके थे, जो बचे थे वो इंजन के चालू होने पर हिलने लगे और उनसे किसी को चोट लगने का खतरा बढ़ गया था। लेखक को ऐसा प्रतीत हो रहा था, कि जैसे उसकी सीट के नीचे ही इंजन हो।
इन सब कारणों से लेखक को लगा कि वो बस में नही इंजन में बैठे हैं।
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लेखक को इंजन के भीतर बैठने का अनुभव क्यों हो रहा था
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