. लेखक को कब लगा कि उसकी पोशाक उसके लिए व्यवधान बन गई?
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jb usne garib khabriya bechne wali aurat ko deka aur uske pas jakr madat krne ki sochi
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जब लेखक ने बुढ़िया को देखा तो लेखक को लगा कि हमारी पोशाक और हमारी हैसियत हमें नीचे गिरने और झुकने से रोकती है। जिस प्रकार हवा की लहरें पतंग को एकदम सीधे नीचे नहीं गिरने देतीं, बल्कि धीरे-धीरे गिरने की इजाजत देती हैं, ठीक उसी प्रकार हमारी पोशाक हमें अपने से नीची हैसियत वालों से एकदम मिलने-जुलने नहीं देती।
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