लेखक की माँ के स्वभाव पर प्रकाश डालिए ?
-: पाठ अब कहाँ दूसरा के दुःख में दुःखी होने वाले
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‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में लेखक की माँ एक धार्मिक स्वभाव की महिला थी। वो धर्म-कर्म में पूरी रुचि रखती थीं। वे केवल मनुष्य मात्र से ही प्रेम करतीं बल्कि पशु-पक्षियों तक से प्रेम स्नेह करती थीं। उनके घर के दालान में जब कबूतर ने दो अंडे दिए तो एक अंडे को बिल्ली ने गिरा कर फोड़ दिया। दूसरे अंडे को कोई नुकसान ना पहुंचे इसलिए उन्होंने दूसरे अंडे को संभालने की कोशिश की, लेकिन इस प्रक्रिया में उनके हाथ से छूट गया। जिसका उन्हें बड़ा ही अफसोस हुआ और इस अफसोस की का पछतावा करने के लिए उन्होंने पूरे दिन रोजा रखा। इस तरह लेखक की माँ एक दयालु, संवेदनशील व सहृदया महिला थीं।
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