Hindi, asked by shanusauifi, 4 days ago


लेखक के मामा और सुभान दादा अपने किन पर्वो पर एक दूसरे को नहीं भूलते थे?
लेखक के मामा होली,दिवाली पर और सुभान दादा ईद - बकरीद पर एक दुसरे को नहीं भुलते थे |​

Answers

Answered by vaibhavdantkale65
2

Answer:

this is a correct answer bro

Explanation:

लेखक के मामा और सुभान दादा अपने किन पर्वो पर एक दूसरे को नहीं भूलते थे?

लेखक के मामा होली,दिवाली पर और सुभान दादा ईद - बकरीद पर एक दुसरे को नहीं भुलते थे |

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Answered by kanchabala430
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डिजिटल इंडिया में मेरा आपका हम सब का स्वागत है. डिग्री लिए हाथों में भले ही नौकरी हो या न हो. महंगे स्मार्ट फोन और उसपर भी जियो, एयरटेल, वोडाफोन की तरफ से कम दरों पर बांटे जा रहे डाटा की बदौलत लाइक कमेन्ट शेयर कर हम जिंदगी गुजार रहे हैं. डिजिटल इंडिया ऊपर से सोशल मीडिया का दौर. एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा. सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है सोशल मीडिया पर लिखी बातों को पढ़ा जा रहा है. आम से लेकर खास तक होड़ लगी है कि कौन कितना बड़ा बुद्धिजीवी है. एक रेस है जहां सब भाग रहे हैं. रेस, जिसमें सबको आगे निकलना है. रेस जिसमें वरिष्ठ से लेकर कनिष्ठ तक, मध्यम से लेकर निम्न तक सब लगातार भागे जा रहे हैं.

सब को कुछ न कुछ सिद्ध करना है. ये सवाल प्रासंगिक है कि क्या सिद्ध करना है. मगर हां जो हो रहा है सब सोशल मीडिया के लिए सोशल मीडिया की खातिर हो रहा है. अपने को अल्पबुद्धियों और मंदबुद्धियों के बीच बुद्धिजीवी साबित करने के लिए हो रहा है.

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