लेखक क्या देख कर हटा सो जाना उचित नहीं मानते
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‘क्या निराश हुआ जाए’ पाठ में लेखक ईमानदारी और परिश्रम के बदले झूठ और बेईमानी की प्रवृत्ति को देखकर भी निराश हो जाना उचित नहीं मानते। लेखक का मानना है कि भले ही चारों तरफ ईमानदारी और झूठ का बाजार फैला हो, लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार हों, लेकिन संसार में अच्छे लोगों की भी कमी नहीं और अच्छाई कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में जिंदा अवश्य है। लेखक हालात सुधरने की उम्मीद में हताश हो जाना उचित नही मानते।
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