लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
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लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
Answer:
लेखक ने अपनी जापान यात्रा के दौरान हिरोशिमा का दौरा किया था।
वह उस अस्पताल में भी गए थे जहाँ आज भी उस भयानक विस्फोट से पीड़ित लोगों का ईलाज हो रहा था। फिर एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया देखी। उसे देखकर विज्ञान का छात्र रहा लेखक सोचने लगा कि विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियोधर्मी पदार्थ की किरणें उसमें चली गई होंगी और आसपास से आगे बढ़ गईं पत्थर को झुलसा दिया होगा |
इस प्रत्यक्ष अनुभूति ने लेखक के हृदय को हिला कर रख दिया। उसे प्रतीत हुआ मानो किसी ने उसे थप्पड़ मारा हो और उसके भीतर उस विस्फोट का भयानक दृश्य प्रज्वलित हो गया। उसे जान पड़ा मानो वह स्वयं हिरोशिमा बम का उपभोक्ता बन गया हो।
Answer:
लेखक हिरोशिमा की घटनाओ के बारे में सुनकर तथा उनके कुप्रभावों को प्रत्यक्ष देखकर भी विस्फोट का भोक्ता नहीं बन पाया। एक दिन वह जापान के हिरोशिमा नगर की एक सड़क पर घूम रहा था। अचानक उसकी नजर एक पत्थर पर पड़ी। उस पत्थर पर एक मानव की छाया छपी हुई थी। वास्तव में परमाणु-विस्फोट के समय कोई मनुष्य उस पत्थर के पास खड़ा होगा। रेडियम-धर्मी किरणों ने उस आदमी को भाप की तरह उड़ाकर उसकी छाया पत्थर पर दाल दी थी। उसे देखकर लिखकर के मन में अनुभूति जग गई। उसके मन में विस्फोट का प्रत्यक्ष दृश्य साकार हो उठा। उस समय वह विस्फोट का भोक्ता बन गया।
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