लेखक ने अपने जीवन में जिन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
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लेखक का जीवन संघर्ष और मुसीबतों से भरा रहा है। उनके पास पढ़ने के लिए पैसे भी नहीं होते थे। दिल्ली में रहकर अपनी पेंटिंग की शिक्षा को पूरा करने के लिए लेखक को अपने भाई से सहायता लेनी पड़ती थी या वह खुद साइन बोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चलाता था। उन्हें अपने ससुराल में देहरादून में उन्हें केमिस्ट की दुकान पर कंपाउंडरी भी करनी पड़ी। लेखक की मुलाकात बच्चन जी से हुई और वे लेखक को इलाहाबाद ले गए और उनकी पढ़ाई का पूरा खर्चा अपने जिम्मे ले लिया। इलाहाबाद में लेखक को बच्चन जी ने एम० ए० कराया। लेखक लोगों से कम ही मिलता जुलता था इसलिए वह अपने दुख किसी को बता नहीं पाते थे। उन्हें इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला तो हिंदी भाषा का पूरा ज्ञान न होने की समस्या सामने आई। उनकी कुछ रचनाएं प्रकाशित भी हुई पर कुछ नहीं भी हुई। अंत में वह ‘हंस’ कहानी विभाग में काम करने लगे।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।
लेखक का जीवन संघर्ष और मुसीबतों से भरा रहा है। उनके पास पढ़ने के लिए पैसे भी नहीं होते थे। दिल्ली में रहकर अपनी पेंटिंग की शिक्षा को पूरा करने के लिए लेखक को अपने भाई से सहायता लेनी पड़ती थी या वह खुद साइन बोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चलाता था। उन्हें अपने ससुराल में देहरादून में उन्हें केमिस्ट की दुकान पर कंपाउंडरी भी करनी पड़ी। लेखक की मुलाकात बच्चन जी से हुई और वे लेखक को इलाहाबाद ले गए और उनकी पढ़ाई का पूरा खर्चा अपने जिम्मे ले लिया। इलाहाबाद में लेखक को बच्चन जी ने एम० ए० कराया। लेखक लोगों से कम ही मिलता जुलता था इसलिए वह अपने दुख किसी को बता नहीं पाते थे। उन्हें इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला तो हिंदी भाषा का पूरा ज्ञान न होने की समस्या सामने आई। उनकी कुछ रचनाएं प्रकाशित भी हुई पर कुछ नहीं भी हुई। अंत में वह ‘हंस’ कहानी विभाग में काम करने लगे।
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- लेखक ने अपने जीवन में में प्रारंभ से ही अनेक कठिनाइयों को झेला वह किसी के व्यंग बाण का शिकार होकर केवल पांच ₹7 लेकर ही दिल्ली चला गया वह बिना फीस के पेंटिंग के वकील में स्कूल में भर्ती हो गया वहां उसे साइन बोर्ड पेंट करके गुजारा चलाना पड़ा लेकिन की पत्नी का टीवी के होने के कारण देहांत हो गया था और भाई युवावस्था में ही विदुर बन गए थे इसलिए उन्हें उन्हें उन्हें पत्नी का भी योग पीड़ा भी झेलना पड़ा बाद में एक घटना चक्र में लेखक अपनी ससुराल देहरादून आ गया वहां एक-एक कंपाउंड रीपर दिखने लगे वह बच्चन जी के आग्रह पर इलाहाबाद चला गया वहां बच्चन जी के पिता उन्हें लोकल गार्जियन बने
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