लेखक ने अतिथि के स्वागत के लिए क्या क्या किया और बाद में वह क्या चाहने लगा?
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यह फरमाइश एक ऐसी चोट के समान थी जिसकी लेखक ने आशा नहीं की थी। इस चोट का लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि वह अतिथि को राक्षस की तरह मानने लगा। उसके मन में अतिथि के प्रति सम्मान की बजाय बोरियत, बोझिलता और तिरस्कार की भावना आने लगी। वह चाहने लगा कि यह अतिथि इसी समय उसका घर छोड़कर चला जाए
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लेखक अपने अतिथि को भावभीनी विदाई देनाचाहता था। वह चाहता था कि अतिथि को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन तक जाया जाए। उसे बार-बार रुकने का आग्रह किया जाए, किंतु वह न रुके।
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