लेखक ने अतिथि को देवता न मानकर राक्षस के समान क्यों माना है
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यदि अतिथि थोड़ी देर तक टिकता है तो वह देवता रूप बनाए रखता है, पर फिर वह मनुष्य रूप में आ जाता है। उसका मान-सम्मान होता है, और ज्यादा दिन तक टिकने पर वह राक्षस का रूप ले लेता है। तब वह राक्षस जैसा बुरा प्रतीत होता है। ... इसी आशा के साथ लेखक ने दूसरे दिन भी अतिथि का सत्कार किया
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