लेखक ने कुंई को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के समान क्यों खाया स्पष्ट कीजिए
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O लेखक ने कुंई को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के समान क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
► लेखक कुंई को सोने की अंडा देने वाली मुर्गी के सामान इसलिए कहा है, क्योंकि कुंई से प्रतिदिन दिन में केवल एक बार ही पानी निकाला जाता है। उस पानी का मूल्य किसी सोने के अंडे से कम नहीं होता। इस कारण लेखक ने कुंई को सोने के अंडा देने वाली मुर्गी कहा है।
कुंई राजस्थान के थार मरुस्थल में वर्षा जल को संग्रहण करने की एक तकनीक है, जिसमें एक छोटा सा गड्ढा खोदकर उसमें वर्षा का जल संग्रहण किया जाता है। राजस्थान में रेतीली भूमि होने के कारण वर्षा का पानी रेत में समा जाता है, जिससे रेत की निचली सतह पर नमी फैल जाती है और यह नमी खड़िया मिट्टी की परत के ऊपर तक रहती है। इसी नमी को पानी के रूप में बदलने के लिए लगभग चार-पाँच हाथ के व्यास का चौड़ा और 30 से 60 हाथ की गहराई का गड्ढा खोदा जाता है। खुदाई करने के साथ-साथ चिनाई भी कर ली जाती है। इस चिनाई के बाद खड़िया की पट्टी पर पानी रिस-रिस कर जमा होता रहता है। इसी संकरे व गहरे गड्ढे को ‘कुंई’ कहा जाता है जो खून का ही एक छोटा रूप है। इसके कारण इसे कुंई कहा जाता है। यह राजस्थान जैसे पानी के अभाव वाले क्षेत्रों में जल संग्रह करने की एक तकनीक है। कुंई से प्रतिदिन में केवल एक बार ही पानी निकाला जाता है, क्योंकि इसमें धीरे-धीरे पानी संग्रह होता है और पूरे दिन में एक बार पानी निकालने लेख संग्रह हो पाता है
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