लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
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- दिए गए गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में सार लिखिए ।(5) इस संसार में धन ही सब कुछ नहीं है। धन की पूजा तो बहुत कम स्थानों में होती देखी गई है। संसार का इतिहास उठा कर देखिए तो आपको विदित हो जाएगा कि हम जिन की उपासना करते हैं, जिनके लिए अनेक स्मारक चिह्न बना कर खड़े करते हैं, उन्होंने रुपया कमाने में समय नहीं बिताया था, बल्कि उन्होंने कुछ ऐसे काम किए थे जिनकी महत्ता को हम रुपयों से अधिक मूल्यवान समझते हैं।जिन लोगों के जीवन का उद्देश्य केवल रूपया बटोरना है, उनकी प्रतिष्ठा कम हुई है। अधिकांश अवस्था में तो उन्हें किसी ने पूछा तक नहीं उन्होंने जन्म लिया, रुपया कमाया और परलोक चल दिए किसी ने जाना तक नहीं कि वह कौन थे और कहां गए मानव समाज स्वार्थी अवश्य है पर स्वार्थ की उपासना करना नहीं जानता अंत में वही पूजे जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन को अर्पण करते समय सच्चे मनुष्य का परिचय दिया है|
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लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन करते हुए कहा है कि उसने धोखा भी खाया है परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। पर उसका मानना है कि अगर वो इन धोखों को याद रखेगा तो उसके लिए विश्वास करना बेहद कष्टकारी होगा और ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण उनकी सहायता की है, निराश मन को ढाँढस दिया है और हिम्मत बँधाई है।
टिकट बाबू द्वारा बचे हुए पैसे लेखक को लौटाना, बस कंडक्टर द्वारा दूसरी बस व बच्चों के लिए दूध लाना आदि ऐसी घटनाएँ हैं। इसलिए उसे विश्वास है कि समाज में मानवता, प्रेम, आपसी सहयोग समाप्त नहीं हो सकते।
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