लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत ( संन्यासी ) की तरह क्यों माना है?
अथवा
शिरीष को ‘अद्भुत अवधूत’ क्यों कहा गया है?
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लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा फलता-फूलता है।
वह कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-रस बनाए रखता है। इसी तरह शिरीष का वृक्ष है। वह भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा रहता है।
उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, तब भी शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है, वह काल व समय को जीतकर लहलहाता रहता है।
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