लेखक और उनके मित्र पर्स में निश्चिंत से कब बैठे ?
from class 8 vasanth "bus ki yatra" lesson.
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mostly not found in web.
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बस की जर्जर दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टेयरिंग टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस फिर रुक जाती है।
इंजन ठीक हो जाने पर बस फिर चल पड़ती है किन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पुलिया पर पहुँचते ही टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ देते है तथा चिंता मुक्त होने के लिए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत में लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को उस बस का एक हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल कर बस में निश्चिंत होकर बैठ जाते हैं।
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