Hindi, asked by adawson028, 7 months ago

लेखक उपन्यास पढ़ने लगे और अतिथि फ़िल्मी पत्रिका के पन्ने पलटने लगे, क्यों ? atithi tum kub jaoge . class 9 ncert

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Answered by khaninayath302
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Answer:

व्याख्या - लेखक अपने मन ही कहता है कि उसकी पत्नी की आशंका बिना जड़ की नहीं थी, क्योंकि अतिथि जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। लॉण्ड्री पर दिए कपडे़ धुलकर आ गए और अतिथि अब भी लेखक के घर पर ही था। लेखक अपने मन ही अतिथि से कहता है कि उसके भरी भरकम शरीर से सलवटें पड़ी हुई चादर बदली जा चुकी है परन्तु अभी भी अतिथि यहीं है। अतिथि को देखकर फूट पड़नेवाली मुस्कराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब कही गायब हो गई है। ठहाकों के रंगीन गुब्बारे, जो कल तक इस कमरे के आकाश में उड़ते थे, अब दिखाई नहीं पड़ते। बातचीत की उछलती हुई गेंद चर्चा के क्षेत्र के सभी कोनो से टप्पे खाकर फिर सेंटर में आकर चुप पड़ी है। अब इसे न अतिथि हिला रहा है, न ही लेखक। लेखक अपने मन ही अतिथि से कहता है कि कल से लेखक उपन्यास पढ़ रहा है और अतिथि फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहा है। शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए। परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार-नियोजन, मँहगाई, साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार-मारकर लेखक और अतिथि ने पुरानी प्रेमिकाओं का भी शिक्र कर लिया और अब एक चुप्पी है। ह्रदय की सरलता अब धीरे-धीरे बोरियत में बदल गई है। भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर अतिथि जा नहीं रहा। लेखक अपने मन ही अतिथि से कहता है कि ऐसा लगता है कि किसी न दिखाई देने वाले गोंद से अतिथि का व्यक्तित्व लेखक के घर में चिपक गया है, लेखक इस भेद को सपरिवार नहीं समझ पा रहा है। लेखक के मन में बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है-तुम कब जाओगे, अतिथि? कल लेखक की पत्नी ने धीरे से लेखक से पूछा था,"कब तक टिकेंगे ये?" लेखक ने कंधे उचका कर कहा कि वह क्या कह सकता है? लेखक की पत्नी ने अब गुस्से से कहा कि वह अब खिंचड़ी बनाएगी क्योंकि वह खाने में हल्की रहेगी। लेखक ने भी हाँ कह दिया।

सत्कार की उष्मा समाप्त हो रही थी। डिनर से चले थे, खिचड़ी पर आ गए। अब भी अगर तुम अपने बिस्तर को गोलाकार रूप नहीं प्रदान करते तो हमें उपवास तक जाना होगा। तुम्हारे-मेरे संबंध एक संक्रमण के दौर से गुज़र रहे हैं। तुम्हारे जाने का यह चरम क्षण है। तुम जाओ न अतिथि! तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है न! मैं जानता हूँ। दूसरों के यहाँ अच्छा लगता है। अगर बस चलता तो सभी लोग दूसरों के यहाँ रहते, पर ऐसा नहीं हो सकता। अपने घर की महत्ता के गीत इसी कारण गाए गए हैं। होम को इसी कारण स्वीट-होम कहा गया है कि लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौडे़ं। तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है, पर सोचो प्रिय, कि शराफ़त भी कोई चीज़ होती है और गेट आउट भी एक वाक्य है, जो बोला जा सकता है।

अपने खर्राटों से एक और रात गुंजायमान करने के बाद कल जो किरण तुम्हारे बिस्तर पर आएगी वह तुम्हारे यहाँ आगमन के बाद पाँचवें सूर्य की परिचित किरण होगी। आशा है, वह तुम्हें चूमेगी और तुम घर लौटने का सम्मानपूर्ण निर्णय ले लोगे। मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी। उसके बाद मैं स्टैंड नहीं कर सकूँगा और लड़खड़ा जाऊँगा। मेरे अतिथि, मैं जानता हूँ कि अतिथि देवता होता है, पर आखिर मैं भी मनुष्य हूँ। मैं कोई तुम्हारी तरह देवता नहीं। एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते। देवता दर्शन देकर लौट जाता है। तुम लौट जाओ अतिथि! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ! उफ, तुम कब जाओगे, अतिथि?

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