लिखन बैठि जाकी सबी, गहि-गहि गरब गरूर ।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।।
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लिखन बैठि जाकी सबी, गहि-गहि गरब गरूर ।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।।
इस दोहे में नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं कि नायिका के सौंदर्य का कोई भी उसके सौंदर्य का वास्तविक चित्रण नहीं कर पाया क्योंकि क्षण-प्रतिक्षण उसका सौंदर्य बढ़ता ही जा रहा था। लोग अभिमानी लोग और चतुर चित्रकार बेवकूफ बन गए पर कोई नायिका के सौंदर्य का चित्रण नहीं कर पाया|
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135, लिखन बैठि जाकी सबिहि,
गहि गहि गरब गरूर।।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।।'-
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