लेखन कौशल के विकास में सुलेख, अनुलेख और श्रुतलेख की क्या भूमिका है ? अथवा लेखन कौशल के विकास की कौन-कौनसी विधियाँ हैं ? किन्हीं तीन का वर्णन कीजिये प्राथमिक कक्षाओं में गद्य शिक्षण के 5 उद्देश्य लिखिये । अथवा गद्यकाव्य और पद्यकाव्य में कोई 4 अंतर लिखिये । व्याकरण शिक्षण के लिये कोई 4 खेल गतिविधियाँ बताइये । अथवा आगमन प्रणाली के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिये ।
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¿ लेखन कौशल के विकास में सुलेख, अनुलेख और श्रुतलेख की क्या भूमिका है ?
✎... लेखन कौशल में सुलेख, अनुलेख और श्रुतलेख का अलग-अलग महत्व है। सुलेख से तात्पर्य सुंदर लेख से है, जब वर्ण को सही संयोजित कर सुंदर रूप में लिखा जाए तो वह सुलेख कहलाता है। अनुलेख से तात्पर्य उस लेख से है जिसमें किसी नमूने को देखकर वह उस की प्रतिलिपि तैयार की जाती है। किसी सामग्री को देखकर उसका अनुकरण करना ही अनुलेख कहलाता है। श्रुतलेख वह कौशल है, जिसमें किसी सामग्री को सुनकर उसका लेखन कार्य किया जाता है।
इन तीनों तत्वों का लेखन कौशल में बेहद महत्व है। सुलेख के माध्यम से जहां अपनी लिखावट को सुंदर बनाया जाता है, ताकि पढ़ने वाला उसे ना केवल सरलता से पढ़े बल्कि वह उसे रुचि से भी पढ़े। सुंदर लिखावट देखकर हर कोई उसे पढ़ने के लिए आकर्षित होता है।
अनुलेख लेखन कौशल में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि लेखन कौशल कार्य करते समय अक्सर किसी सामग्री को अलग-अलग स्रोतों के माध्यम से एकत्रित करना पड़ता है, जिसे देखकर लेख तैयार करना पड़ता है और उस सामग्री के सही तत्व अपने लेखन में आए इसलिए अनुलेखन में दक्ष होना आवश्यक है, ताकि उस सामग्री का सही रूप से अनुलेखन कर सकें।
श्रुतलेख लेखन कौशल में तब उपयोग होता है जब हमें किसी से सुनकर लेखन होता है, और कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि सुनकर लिखने की आवश्यकता पड़ती है। सुनकर लिखने की कला में निपुण होने से लेखन कौशल में बेहद मदद मिलती है।
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