Hindi, asked by kumarsanju76058, 5 months ago

लिाखतगधाशका
बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है, अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलत
और विजयकहाँ? यदि हमारामन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होग
क्योंकि सफलता की, विजयकी, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।
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उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारतीकक्षा के किस पाठ से लिया गया है?​

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Answered by bhatiamona
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उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारतीकक्षा के किस पाठ से लिया गया है?​

उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारतीकक्षा के कक्षा आठवीं के पाठ 2 आत्मविश्वास से लिया गया है |

पाठ में लेखक यह समझा रहे है कि मनुष्य सफलता तब प्रपात कर सकता है जब उसे अंदर सफलता को पाने के ली जुनून पर विश्वास होना चाहिए |

कुछ मनुष्य ऐसे होते है जो यह अपनी असफलता के लिए अपने भाग्य को कोसते है | वह मेहनत नहीं करते है | भाग्य को दोष देने से वह कभी भी सफल नहीं होते है |

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