लाल बहादुर शास्त्री और जनरल अयूब खान के बीच कौन सा समझौता हुआ
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साल 1965 की भारत-पाक लड़ाई के बाद ताशकंद में समझौता हो रहा था. शास्त्री और जनरल अयूब खान में खूब बातें हुई थीं. दोनों एक बात पर राजी हो गये थे. पर शास्त्री को एक बात का डर था. जिस बात पर वो राजी हुए थे, उसके बारे में उन्होंने इंडिया में किसी से सलाह नहीं ली थी. डर था कि विपक्ष क्या हाल करेगा बाद में. देश का मसला था, पाकिस्तान का पेच था, अपनी पार्टी के लोग ही क्या करते. क्योंकि लड़ाई में भारत काफी आगे बढ़ चुका था. भारत चाहता तो पाकिस्तान को और फंसा सकता था. पर शास्त्री ने इस समझौते में लड़ाई के पहले की स्थिति मान ली थी. इस बात से लड़ाई के जोश में रंगे लोगों के भड़कने का खतरा भी था. पर इस समझौते के लिए भारत पर अमेरिका के साथ रूस का भी दबाव था.
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वहां एक पत्रकार भी था, जिसकी नजर से कुछ छुपने वाला नहीं था
उस रात वहां एक पत्रकार भी था. इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर. अपनी किताब में लिखते हैं कि उस रात उनको सपना आ रहा था कि शास्त्री मर रहे हैं. तभी उनके दरवाजे पर नॉक हुई. एक लेडी ने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं. कुलदीप भागे. देखा कि बरामदे में सोवियत प्रीमियर एलेक्सी कोसीझिन खड़े थे. हाथ से इशारा किये कि शास्त्री मर गये. डॉक्टर आपस में बातें कर रहे थे. शास्त्री के पर्सनल डॉक्टर चुघ भी वहीं थे.