लाला सदानंद के चरित्र पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
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वे चाहते थे कि जिस तरह भी हो, अपने यजमान लाला सदानंद उनके लिए एक-एक पैसा मोहर के बराबर था। अपना पेट काटकर बचाते थे, मगर जब तो कोई न कोई ऐसा खर्च निकल आता, जिससे सारा रुपया उड़ जाता। पंडित शदीराम के हृदय पर बरछियाँ चल जाती थीं। मगर वे कुछ न कर सकते
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