लाल वर्दी वाले अंग्रेज सिपाही लोगों के साथ उस समय किस तरह का व्यवहार करते थे जब उनका राज चलता था जब हमारे देश को आजादी नहीं मिली...
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इसीलिए सचमुच में उसे टैरर-वार कहना उपयुक्त है। इसलिए पहली बार शायद यह हुआ होगा कि सरकार ने अपनी ओर से ही तय किया कि प्रश्नोत्तर-काल न करके माननीय गृह मंत्री जी अपना जो वक्तव्य देना चाहते हैं, वह शुरू में ही दें, जिससे अधिक से अधिक समय सदन में चर्चा करने को मिले। मैं इस बात के लिए भी आपका आभारी हूं कि आपने मुझे सबसे पहले बोलने का अवसर दिया और मैं समझता हूं कि अब मेरा कर्तव्य होगा कि मैं माननीय गृह मंत्री जी के साथ मिलकर सारे सदन की पीड़ा और शोक प्रकट करुं।
वहां पर इतना भयंकर कांड हुआ, जिसमें बहुत सारे लोग मारे गये, जिसमें भारतीयों के साथ-साथ विदेशी लोग भी थे। बहुत बहादुरी और वीरता से हमारे सुरक्षा-कर्मियों ने उनका सामना किया, जिसमें एनएसजी के कमांडोज भी थे, मुम्बई पुलिस के, आर्मी और नेवी के जवान भी थे। सभी ने मिलकर उनका सामना किया। मैं समझता हूं कि जब वर्णन आता है तो उसमें रेलवे स्टेशन पर जो घटना हुई, उसमें रेलवे के कर्मचारियों ने जिस वीरता का परिचय दिया, जिन दो-तीन होटल्स में घटना हुई, उसमें होटल्स के कर्मचारियों ने भी अपने प्राणों को संकट में डालकर लोगों की सहायता करने की कोशिश की, ये सारे लोग हमारे आदर के पात्र हैं, देश की कृतज्ञता के पात्र हैं। मैं सरकार और सदन के साथ मिलकर उनके प्रति अपनी विनम्र श्रद्धा प्रकट करता हूं, आभार प्रकट करता हूं।
कुछ नामों की चर्चा तो देश भर में लगातार होती रही हैं, पत्र-पत्रिकाओं में होती रही है जिनमें हेमंत करकरे, अशोक काम्टे, विजय सालस्कर और संदीप उन्नीकृष्णन का नाम कोई भूल नहीं सकता है। माननीय गृह मंत्री जी ने सही किया जब उन्होंने उस तुकाराम का नाम लिया, जिसने असीम वीरता का परिचय देते हुए एक टैरेरिस्ट को केवल लाठी के सहारे जीवित पकड़ा। केवल एक लाठी के सहारे उसने यह काम करके दिखाया।
मैं मानता हूं कि यह अवसर है कि विगत वर्षों में जिस आतंकवाद का यह देश सामना करता रहा है, उसका कुछ गहराई से विश्लेषण करें। मेरी मान्यता है और जैसा माननीय गृहमंत्री जी ने कहा है कि सारा