लालच बुरी बला है । इस उकति को आधार बनाकर एक मौलिक कहानी लिखिए
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लालच बुरी बला है
एक छोटा सा नगर था जिसका नाम माधवपुर था, उस नगर में कई धनवान व्यक्ति रहा करते थे | सभी को एक दूसरे पर पूरा विश्वास था और भाईचारे की भावना उनमें कूट – कूट कर भरी थी | उसी नगर में संतोष नाम का एक कंजूस और लालची व्यक्ति रहता था जो किसी भी सामाजिक या धार्मिक कार्य में एक भी पैसा खर्च नहीं करता था, और तो और अपने घर वालों को भी वह कंजूसी से रहने की सलाह देता था | आस पड़ोस के और घर के सभी लोग उसके इस स्वभाव से बेहद परेशान थे |
अपने बचाए हुए सभी पैसे वह अपने संदूक में रख कर हर रोज़ उन्हें देख कर खुश होता और दुबारा बंद करके रख देता, यह क्रम कईं सालों तक चलता रहा और संतोष अपने नाम के उलट और भी ज़्यादा असंतोषी बनता चला गया | एक बार उसकी माँ बीमार हुई, और आखरी इच्छा के रूप में उन्होंने संतोष को उसके गाँव आने को कहा | यह खबर सुनकर संतोष बड़ी दुविधा में पड़ गया और उसे अपने जमा किये हुए पैसों की चिंता सताने लगी | बहुत सोच विचार के बाद उसने निर्णय लिया कि उन रुपयों को ज़मीन में सुरक्षित रूप से गाढ़ देगा | यह निर्णय कर के वह अपने घर के पिछवाड़े गया और एक बरगद के वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर उसमे पैसा गाढ़ दिया और निश्चिन्त होकर अपने गाँव की ओर चल पड़ा|
गाँव में उसे काफी समय लग गया और उसी बीच उसके पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की खेलते-खेलते उसके बगीचे में जा पहुँची और उसी पेड़ के नीचे खेलने लगी | अचानक से उसकी नज़र एक छोटे से पौधे पर गयी जो तेज़ धूप के कारण सूख रहा था, उसने उस पौधे को उखाड़ कर उसी बरगद के पेड़ के नीचे गाढ़ने की सोची और उसी जगह पर गई जहाँ पर पैसा गढ़ा हुआ था, जैसे ही उसने गड्ढा खोदा उसे पैसों की थैली दिखाई दी और उसे लेकर वह अपने पिता के पास जा पहुंची | उन रुपयों को देखकर उसके पिता के सब्र का बांध नहीं टूटा और उन्होंने बड़े ही शांत भाव से उन पैसो को लेते हुए कहा कि, “ये पैसे हमारे नहीं है, जिसके हैं उसे हम लौटा देंगे” |
कुछ समय बाद जब संतोष अपने गाँव से लौटा तो सबसे पहले वह बरगद के पेड़ के नीचे अपने पैसे देखने के लिए गया और उन्हें वहाँ न पाकर उसके होंश उड़ गए और वह वहीँ दहाड़े मारकर रोने लगा | किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर मामला क्या था ? कुछ समय के बाद जब वह थोड़ा शांत हुआ तब वह नगर में अपने सभी पड़ोसियों से पूछताछ करने निकल पड़ा | परंतु किसी से भी उसे संतोषजनक उत्तर न मिला | थक हार कर वो वापस घर लौट आया, उसी दिन शाम को उसके पड़ोसी मनोज अपनी बेटी के साथ रुपयों की थैली लेकर, जो उन्हें उनकी बेटी ने दी थी, उसके घर पहुंचे | मनोज ने संतोष को सब समझाया और पूरी स्थिति का ब्यौरा दिया | यह सुनकर संतोष की आँखों में चमक आ गयी और अगले ही क्षण उसके दिमाग में एक योजना कौंधी | उसने पैसे खोल के देखे और उन्हें गिनने का नाटक करने लगा और अचानक ही बोल पड़ा, “इसमें तो कुछ पैसे कम है?” यह सुनकर मनोज और उसकी बेटी की आँखे फटी की फटी रह गई | तब संतोष ने उन पैसों की चोरी का इलजाम मनोज की बेटी पर डाल दिया | उसी समय अत्यंत वाद-विवाद के बाद नौबत अदालत जाने की आ पड़ी |
अदालत में न्यायाधीश बहुत ही ईमानदार और समझदर इन्सान थे | उन्होंने दोनों पक्षों की दलीलों को गौर से सुना और उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि संतोष झूठ बोल रहा है | इसलिए उन्होंने चालाकी से सबसे पहले संतोष से पूछा, “तुम्हारे कितने पैसे खो गए थे?” संतोष ने जवाब दिया, “चालीस हजार” तभी न्यायाधेश ने मनोज की बेटी से सवाल किया कि, “तुम्हें उस थैली में कितने पैसे मिले थे?”
उसने जवाब दिया, “तीस हजार” तभी न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “ये पैसे संतोष के नहीं है बल्कि किसी और के है, यदि इस लड़की को पैसे चुराने ही होते तो सारे पैसे चुरा लेती, थोड़े पैसे ही क्यों चुराती? इसलिए इन पैसों को सरकारी खज़ाने में जमा किया जाये और ईनाम के तौर पर इस ईमानदार लड़की को ५ हजार रूपए दिए जाये |”
यह सुनकर संतोष बिलकुल स्तब्ध रह गया और वह अपने इन खोये हुए पैसों का कुछ न कर सका | इसलिए कहा गया है कि लालच बहुत ही बुरी बला है |
शर्मी
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