Hindi, asked by jay5359, 1 month ago

लालच बुरी बला निबंध हिंदी में छोटा सा​

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Answered by Anonymous
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अगर वह व्यक्ति लालच नहीं करता रोज एक अंडे से ही संतुष्ट रहता तो उसे लंबे समय तक अंडा मिलता रहता। ... लालच समय हमेशा नुकसान ही देता है। लालच करने से हमें भले तुरंत फायदा होता दिखता हो लेकिन आखिर में लालच करने से नुकसान ही होता है। इसीलिए कहते हैं लालच बुरी बला है।

Answered by op6382194
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धन-लोलुपता या लालच ऐसी बुरी चीज है कि उसके फेर में पड़कर मानव कई बार मानवता तक को ताक पर रख देता है। सत्तालिप्सा धनलोलुपता पदलोलुपता के चलते व्यक्ति किसी भी सीमा तक गिर जाता है। चंगेज खाँ नादिरशाह तैमूर लंग और मुहम्मद गौरी भी हमारी ही तरह इंसान थे पर इतिहास गवाह है कि धन-संपत्ति के लोभ में उन्होंने हैवानियत का ऐसा नंगा नाच दिखाया कि इंसानियत कराह उठी तथा व्याकुल जनता त्राहि-त्राहि कर उठी।

धन-लोलुपता या लालच ऐसी बुरी चीज है कि उसके फेर में पड़कर मानव कई बार मानवता तक को ताक पर रख देता है। सत्तालिप्सा धनलोलुपता पदलोलुपता के चलते व्यक्ति किसी भी सीमा तक गिर जाता है। चंगेज खाँ नादिरशाह तैमूर लंग और मुहम्मद गौरी भी हमारी ही तरह इंसान थे पर इतिहास गवाह है कि धन-संपत्ति के लोभ में उन्होंने हैवानियत का ऐसा नंगा नाच दिखाया कि इंसानियत कराह उठी तथा व्याकुल जनता त्राहि-त्राहि कर उठी।मीरजाफर ने देशभक्ति की जगह गद्दारी का रास्ता कोयों अख्तियार किया क्योंकि वह लोभी और लालची था। लोकोक्ति है- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पीव देख पराई चूपड़ी मत ललचावै जीभ। यदि इस लोकोक्ति के अनुसार उपरोक्त खलनायकों ने संतोषपूर्वक अपना जीवन बिताया होता तो आज मर जाने के बाद भी लोग उनके नाम पर थूकते नहीं।

धन-लोलुपता या लालच ऐसी बुरी चीज है कि उसके फेर में पड़कर मानव कई बार मानवता तक को ताक पर रख देता है। सत्तालिप्सा धनलोलुपता पदलोलुपता के चलते व्यक्ति किसी भी सीमा तक गिर जाता है। चंगेज खाँ नादिरशाह तैमूर लंग और मुहम्मद गौरी भी हमारी ही तरह इंसान थे पर इतिहास गवाह है कि धन-संपत्ति के लोभ में उन्होंने हैवानियत का ऐसा नंगा नाच दिखाया कि इंसानियत कराह उठी तथा व्याकुल जनता त्राहि-त्राहि कर उठी।मीरजाफर ने देशभक्ति की जगह गद्दारी का रास्ता कोयों अख्तियार किया क्योंकि वह लोभी और लालची था। लोकोक्ति है- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पीव देख पराई चूपड़ी मत ललचावै जीभ। यदि इस लोकोक्ति के अनुसार उपरोक्त खलनायकों ने संतोषपूर्वक अपना जीवन बिताया होता तो आज मर जाने के बाद भी लोग उनके नाम पर थूकते नहीं।अफसोस कि आज भी जीवन के हर क्षेत्र में हमें इन लोलुप तथा असंतुष्ट नायकों के आधुनिक संस्करण ढँढंने के लिए कुछ ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोगों के लिए पैसा ही ईश्वर है खुदा है धर्म है ईमान है पीर है पैगंबर है और अगर नहीं भी है तो इन सब में से किसी से कम नहीं है। मानवता की ऐसी-तैसी और रही देशभक्ति और जम्हूरियत तो वह गई तेल लेने।

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