लालच बुरी बला पर कहानी
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एक जंगल में एक शिकारी शिकार खेलने के लिए आया तो उसे भयंकर सूअर मिला। शिकारी ने उस मोटे ताजे सूअर को देखते ही उस पर तीर चला दिया मगर सूअर ने उस तीर की परवाह किए बिना ही मुड़कर उस शिकारी पर पूरी ताकत से हमला कर दिया बस फिर क्या था कुछ क्षणों में उस शिकारी की लाश खून से लथपथ पड़ी नजर आई। मगर सूअर के पेट में लगा तीर उसे भी ले डूबा। यानी शिकारी के साथ-साथ उसकी भी लाश वहां पर नजर आने लगी मारने वाला भी मर गया और मरने वाला तो मरेगा ही थोड़ी देर के पश्चात वहां पर एक गीदड़ घूमता हुआ आ निकला तो उसने मोटे सूअर की लाश को वहां पर पड़े देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। वह खुशी से नाच ही उठा था। वाह वाह आज तो अपना नसीब ही जाग उठा है पूरे का पूरा जंगली सूअर वह भी मोटा ताजा अब तो कई दिन तक काम करने की भी जरूरत नहीं रहेगी।गीदड़ ने उसके पेट में लगा तीर निकाला उससे जो अंतडियो का टुकड़ा लगा था उस गीदड़ ने ने सोचा कि आज इसी टुकड़े को खा कर गुजारा करेंगे कल से उसे खाना शुरू करेंगे। लालची गीदड़ लालच में फंस गया और तीर पर लगा मास खाने लगा। उस लालची गीदड़ ने यह भी नहीं सोचा कि तीर के आगे लोहे का टुकड़ा भी लगा हुआ है। बस अंतडी के टुकड़े के साथ ही लोहे के टुकड़े को खाने लगा।मगर लोहे का टुकड़ा उस गीदड़ के गले में फंस गया जिसके कारण उसकी वहीं पर मौत हो गई। इसे कहते हैं भाग्य का खेल और लालच का फल जीवन में इंसान यह भी भूल जाते हैं कि वह जो चीज तुम्हारे सामने मरी पड़ी है वह भी तो पहले जीवित थी और जब संसार में नहीं रही तो तुम भी कौन सा संसार में सदा रहोगे।शिक्षा : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कभी भी लालच नहीं करना चाहिए क्योंकि लालच बुरी बला है।
ब्राह्मण की पत्नी ने जब उससे यह कहानी सुनी तो वह बोली अच्छा ठीक है अगर में जो तिल पड़े हैं मैं उन्हीं की रोटियां बना कर ब्राह्मणों को खिला दूंगी।हां यह बात ठीक है प्रिय तुम यह भी याद रखो कि इस संसार में कोई भी जीव जब मां के गर्भ में होता है तो उसकी आयु, धन, कर्म, विद्या और मृत्यु यह पांचो चीजें उसी समय तैयार हो जाती है जिसे हम भाग्य कहते हैं ।ठीक है तो हमें अब मेरी आंखें खुल गई है मैं आज के पश्चात कभी भूल नहीं करूंगी। उसी समय ब्राह्मण की पत्नी ने तिलों को गर्म पानी में भिगोया फिर कूट कर उन्हें धूप में सुखा दिया तिलों को वहीं छोड़कर वह बेचारी अपने ओर कामों में लग गई।इसी बीच एक कुत्ता वहां पर आया उसने आते ही उन तिलों में पेशाब कर दिया। उस स्त्री ने जैसे ही कुत्ते को पेशाब करते देखा तो उसके मन में बहुत दुख हुआ वह सोचने लगी कि वह क्या करें।उसने एक रास्ता निकाला – वह उन तिलो को लेकर पड़ोसन के घर गई थी आप मुझे इन के बदले में साबुत तिल दे दो। जैसे ही वह उस पड़ोसन के पास पहुंची तो उस बुड्ढी औरत का बेटा भी वहां पर मौजूद था उसने झट से उस बुढ़िया से कहा –
माजी इन तिलों को मत लो अपने साफ और कुटे हुए तिल यदि तुम्हें देकर कोई सबूत और गंदे तेल लेता है तो समझ लो कि इसमें कोई भेद है।अपने बेटे की बात सुनकर उस औरत ने तिल बदलने से इनकार कर दिया उस ब्राह्मण की पत्नी की यह चाल असफल हो गई।
शिक्षा : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि झूठ का सहारा हमें कभी नहीं लेना चाहिए इससे खुद का ही नुकसान होता है।