लालचंद ने सच्चा ज्ञान आत्मा को माना है
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तीसरे वाख में कवयित्री के आत्मालोचन की अभिव्यक्ति है। वे अनुभव करती हैं कि भवसागर से पार जाने के लिए सद्कर्म ही सहायक होते हैं। भेदभाव का विरोध और ईश्वर की सर्वव्यापकता का बोध चौथे वाख में है। ललद्यद ने आत्मज्ञान को ही सच्चा ज्ञान माना है।
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