लोमड़ी भूख से इधर-उधर भटकना अंगूर के गुच्छे देखना - उसे पाने के लिए
उछल-कूद करना असफल एक खरगोश का यह देखना लोमड़ी को चिढ़ाना
अंगूर खट्टे है।
सीख।
कहाणी लेखन
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“ खट्टे अंगूर ”
किसी वन में एक भूखी लोमड़ी खाने की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी। बहुत दिनों से भूखी होने के कारण उसको भोजन की बहुत जरूरत थी। वह इधर-उधर भटकते हुए वन में ही दूर तक आ पहुंची मगर फिर भी उसे खाने के लिए कुछ न मिला।
इतनी दूर आने के बाद वह थोड़ा और आगे तक चलने लगी और उसे बेल पर लटके हुए अंगूर दिखाई दिए। अंगूर के गुच्छे को देखते ही उसके मुंह में पानी की बाढ़ सी आ गई। वह अंगूर के गुच्छों को देखते ही कहने लगी कि अब इन्हें मेरे अलावा कोई और नहीं खा पाएगा।
वह तेजी से अंगूर की बेल की ओर पहुंची और अंगूर के गुच्छों तक पहुंचने के लिए उछलने लगी। वह बहुत देर तक कोशिश करती रही मगर अंगूर का एक गुच्छा तो क्या उसके हाथ एक अंगूर तक ना आया।
वह कभी किसी और तरीके से कूदती तो कभी किसी और तरीके से, मगर हमेशा ही वह नाकामयाब रही।
अंत में वह अपने मन में कहने लगी कि यह अंगूर तो खट्टे होंगे। इन्हें कौन खाएगा? कोई पागल ही होगा जो इन्हें खाने की सोचेगा? मैं तो एक चालाक लोमड़ी हूं और मुझे इन्हें खाना शोभा भी नहीं देता है। इन्हें खाना तो मेरी शान के खिलाफ है।
इतना कहते ही वह लोमड़ी वहां से चली गई।
शिक्षा - जब हम कोई कार्य करने में असमर्थ रहते हैं तो हमें उस कार्य को किसी अन्य तरीके से करना चाहिए न कि उस कार्य को व्यर्थ समझकर उसका त्याग कर देना चाहिए।