History, asked by kamaljeetdhiman43769, 6 hours ago

लेनिन की अप्रैल थीसिस क्या थी​

Answers

Answered by IFSShashankKamal
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Vladimir Lenin

Explanation:

The "April Theses" were a series of ten directives issued by the Bolshevik leader Vladimir Lenin upon his return to Petrograd from his exile in Switzerland via Germany and Finland. Theses were mostly aimed at fellow Bolsheviks in Russia and returning to Russia from exile.

Answered by pratibha6258
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Answer:

लेनिन की अप्रैल थीसिस के बहुमूल्य सबक

कई वर्ष देश से बाहर निर्वासन में कार्य करते रहने के बाद 17 अप्रैल, 1917 (पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 3 अप्रैल) को का‐ लेनिन रूस लौटे। अगले ही दिन लेनिन ने बोल्शेविक पार्टी के सदस्यों की एक सभा को संबोधित किया, जहां उन्होंने फरवरी क्रांति की जीत, जिसमें ज़ार का तख़्ता पलट हुआ था, के बाद क्रांति के अगले पड़ाव का विस्तार करते हुए 10 थीसिसें पेश कीं। बोल्शेविक पार्टी को इस अप्रैल थीसिस के अपनाने के सात महीने बाद हुई अक्तूबर क्रांति की जीत के लिए आत्मगत हालातें तैयार करने में बहुत मजबूती मिली। आगे चलकर यह अप्रैल थीसिस पार्टी के अखबार प्राव्दा में “वर्तमान क्रांति में सर्वहारा वर्ग के कार्यभार” के नाम से लेख के रूप में प्रकाशित की गयी।

लेनिन ने 17 अप्रैल, 1917 को, निर्वासन से वापस आने के एक दिन बाद, पेत्रोग्राद में तौरिड महल में हुई बोल्शेविक पार्टी की सभा में इस थीसिस को पेश किया

रूसी क्रांति के शताब्दी वर्ष के अवसर पर मज़दूर एकता लहर में छपने वाले लेखों की श्रृंखला का यह दूसरा लेख है। इसके पहले लेख में 1917 की फरवरी क्रांति का विश्लेषण पेश किया गया था, जिस क्रांति के द्वारा रूस में सदियों से बरकरार ज़ार की सत्ता का तख़्ता पलट हुआ था। फरवरी क्रांति से रूस में एक अजीब सी स्थिति पैदा हो गयी, जिसे दोहरी सत्ता कहते हैं। एक ओर थी रूसी पूंजीपति वर्ग के द्वारा बनायी गयी अस्थायी सरकार, तो दूसरी ओर खड़ी थीं मज़दूरों और सैनिकों की सोवियतें, जो कि बहुसंख्यक मेहनतकश जनसमुदाय की प्रतिनिधि थीं।

-:अप्रैल थीसिस मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के अन्दर रूस की ठोस वस्तुगत हालात के ठोस विश्लेषण से उभर कर आई थी।

ज़ार का तख़्ता पलट करने के तुरंत बाद रूसी मज़दूर वर्ग और लोगों के सामने तीन मुख्य सवाल उभरकर आये।

1) प्रथम विश्व युद्ध से रूस को कैसे निकाला जाये जो युद्ध बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच दुनिया के पुनः बंटवारे के लिए किया जा रहा था;

2) भूमिहीन और गरीब किसानों के बीच जोते जाने के काबिल ज़मीन का बंटवारा कैसे किया जाये, जिसमें से अधिकांश ज़मीन सामंती जमींदारों के कब्जे़ में थी; और

3) जब खाद्यानों की जबरदस्त कमी है और अकाल का खतरा है, ऐसे हालात में सभी के लिए अनाज किस तरह से मुहैया कराया जाये;

इन तीनों मुख्य सवालों को बोल्शेविक पार्टी ने अमली तौर पर इस तरह के क्रांतिकारी नारों का रूप दिया: ज़मीन, शांति और रोटी!

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