लेनिन के साम्राज्यवादी सिद्धांत का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
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लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांति के युग का मार्क्सवाद है। विचारधारा के स्तर पर यह सर्वहारा क्रांति की और विशेषकर सर्वहारा की तानाशाही का सिद्धांत और कार्यनीति है।लेनिन ने उत्पादन की पूँजीवादी विधि के उस विश्लेषण को जारी रखा जिसे मार्क्स ने पूंजी में किया था और साम्राज्यवाद की परिस्थितियों में आर्थिक तथा राजनीतिक विकास के नियमों को उजागर किया। लेनिनवाद की सृजनशील आत्मा समाजवादी क्रांति के उनके सिद्धांत में व्यक्त हुई है। लेनिन ने प्रतिपादित किया कि नयी अवस्थाओं में समाजवाद पहले एक या कुछ देशों में विजयी हो सकता है। उन्होंने नेतृत्वकारी तथा संगठनकारी शक्ति के रूप में सर्वहारा वर्ग की दल विषयक मत को प्रतिपादन किया जिसके बिना सर्वहारा अधिनायकत्व की उपलब्धि तथा साम्यवादी समाज का निर्माण असम्भव है।
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लेनिन ने तर्क दिया कि साम्राज्यवादी विस्तार ने पूंजीवाद को अपने अपरिहार्य संकट को स्थगित करने और समाजवाद में रूपांतरित होने की अनुमति दी। इसने दुनिया के लिए नई, गंभीर समस्याएं भी पैदा कीं। लेनिन ने प्रथम विश्व युद्ध को एक साम्राज्यवादी युद्ध के रूप में देखा, जो कई यूरोपीय साम्राज्यों के एक साथ विस्तार से उत्पन्न तनाव के कारण हुआ।
साम्राज्यवाद, पूंजीवाद का उच्चतम चरण (1917), व्लादिमीर लेनिन द्वारा, एक वित्तीय कुलीनतंत्र बनाने के लिए, बैंक और औद्योगिक पूंजी के अंतर्संबंध द्वारा, कुलीनतंत्र के गठन का वर्णन करता है, और वित्तीय पूंजी के कार्य की व्याख्या करता है। शोषण उपनिवेशवाद निहित है|