लोनपो गार तिब्बत के बत्तीसवें राजा सौनगवसैन
गांपो के मंत्री थे। वे अपनी चालाकी और हाजिरजवाबी.
के लिए दूर-दूर तक मशहूर थे। कोई उनके सामने
टिकता न था। चैन से ज़िंदगी चल रही थी। मगर
जब से उनका बेटा बड़ा हुआ था उनके लिए चिंता
का विषय बना हुआ था। कारण यह था कि वह
बहुत भोला था। होशियारी उसे छूकर भी नहीं गई
थी। लोनपो गार ने सोचा, “मेरा बेटा बहुत सीधा-सादा
है। मेरे बाद इसका काम कैसे चलेगा!"
एक दिन लोनपो गार ने अपने बेटे को सौ भेड़ें
देते हुए कहा, “तुम इन्हें लेकर शहर जाओ। मगर
इन्हें मारना या बेचना नहीं। इन्हें वापस लाना सौ जौ
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लोनपो गार तिब्बत के बत्तीसवें राजा सौनगवसैन गांपो के मंत्री थे | वे अपनी चालाकी और हाजिर जवाबी के लिए दूर - दूर तक मशहूर थे | कोई उनके सामने टिकता न था | चैन से जिन्दगी चल रही थी | मगर जब से उनका बेटा बड़ा हुआ था | उनके लिए चिंता का विषय बना हुआ था | कारण यह था कि वह बहुत भोला था | होशियारी उसे छूकर भी नहीं गयी थी |
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