लुप्त होती हिंदी भाषा की भविष्य
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ग्लोबलाइजेशन के दौर में पूरी दुनिया कुछ बेहतर पाने के लिए अपनी कुछ अहम चीजों को पीछे छोड़ती जा रही है। कुछ चीजें छूटते-छूटते विलुप्त भी हो रही हैं। बात हम किसी जीव-जंतु या उत्पाद की नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं भाषा की। भाषा यानी अभिव्यक्ति का माध्यम। संसार में हजारों भाषाएं बोली जाती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग की जाने वाली भाषाओं में फिर भी ठहराव है, लेकिन जो विलुप्त होती भाषाएं हैं वे ज्यादातर क्षेत्रीय स्तर की हैं।
गांवों से पलायन, शहरों में बढ़ती आबादी, भाषा की क्लिष्टता, भीषण अकाल, महामारी आदि ऐसे कई कारणों से कई भाषाएं लुप्त हो गईं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की जा रही साजिशों के कारण भी कई आंचलिक व लोक भाषाएं दम तोड़ने के कगार पर हैं। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में जब कोई बच्चा हिंदी या अपनी क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग करता है तो उसकी उसे सजा दी जाती है। अब जरा सोचिए कि जो बच्चा अपनी भाषा के प्रयोग के लिए सजा पाएगा, क्या वह अपनी भाषा से कट नहीं जाएगा। परिणामतः धीरे-धीरे भाषा दम तोड़ देगी। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 तक 96 प्रतिशत भाषाएं और उनकी लिपियां समाप्त हो जाएंगी। विश्व में दुर्लभ श्रेणी की भाषाओं की संख्या 234 तक पहुंच चुकी है तथा 2500 से भी अधिक बोलियां समाप्त होने के कगार पर हैं। भाषा के साथ साथ उससे जुड़ी जानकारी प्रकृति, रहस्य, जीवन शैली, संस्कृति आदि का भी अंत हो जाता है। वर्तमान में संस्कृति भाषा भी इस ओर बढ़ रही है, क्योंकि अब संस्कृत भाषा का बोलचाल में प्रयोग न के बराबर हो रहा है। ईसाइयों और यहूदियों के धर्मग्रंथों की मूल भाषा हिब्रू थी जो अब इस्तेमाल में नहीं है। इसी तरह भारत में पाली, प्राकृत सहित कई भाषाओं ने अपना अस्तित्व खोया है। सिंधु घाटी की लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी, जो किसी युग में निश्चय ही जीवंत भाषा रही होगी। क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत भाषाएं लुप्त हो गई हैं या विलुप्त प्राय हैं। जब भी कोई भाषा अपने सहज स्वाभाविक अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ को व्यक्त करने लगती है, तो वह क्लिष्ट बन जाती और यही क्लिष्टता उसके जनसामान्य से कटने की वजह बनती है। उदाहरण के तौर पर संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाएं।
इसी तरह महात्मा बुद्ध और महावीर की भाषा प्राकृत और पाली रही। इन्हीं भाषाओं में उनके लेख व उपदेश भी है, जो कि क्लिष्ट होने के कारण आम जन से कट गए। संस्कृत भाषा भी एक सीमित वर्ग की भाषा रही है। लैटिन, ग्रीक जैसी भाषाएं अपनी क्लिष्टता के कारण अवरुद्ध हो गईं। इन भाषाओं की लिपियां तो हैं, मगर भाषा लुप्त हो गई, कुछ परिवर्तित हो गईं। लुप्त होती भाषा के बाबत अबू अब्राहम ने द ट्रिब्यून में लिखा कि संस्कृत मृत भाषा नहीं है। यह बात सही है कि संस्कृत भाषा का उपयोग रोजमर्रा के जीवन में लंबे समय तक नहीं हो सका। फिर भी यह भाषा काफी शक्तिशाली है और शास्त्रों में विद्यमान है। यह भाषा इसलिए भी जीवित है कि ज्यादातर क्षेत्रीय भाषाएं संस्कृत के शब्दों और मुहावरों को आत्मसात करती हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2008 में किए गए अध्ययन के अनुसार विश्व में लगभग 6780 भाषाएं बोली जाती हैं और इनमें 6432 ऐसी भाषाएं हैं, जिन्हें 1.50 करोड़ लोग बोलते हैं। 585 करोड़ लोग ऐसे हैं जो 268 भाषाओं का प्रयोग करते हैं। ग्लोबलाइजेशन के दौर में 6432 भाषाओं के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। वर्ष 2021 तक 96 भाषाएं और उनकी लिपियां समाप्त हो जाएंगी। विश्व में 234 भाषाएं ऐसी हैं जो कि दुर्लभ श्रेणी में आ चुकी हैं तथा 2500 से भी अधिक भाषाएं एवं बोलियां समाप्ति की कगार पर है।
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Happy Hindi diwas
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Question:- लुप्त होती हिंदी भाषा की भविष्य?⤵
Answer:-⤵
अभी हिंदी भाषा बहुत ज्यादा लुप्त है लेकिन अभी भी हम इसमें परिवर्तन कर सकते हैं अगर हम हिंदी भाषा पर अगर ध्यान दें तो हमारा हिंदी भाषा का भविष्य बहुत अच्छा होगा हमें हिंदी से बहुत सहायता मिलेगी हिंदी भाषा से भी बहुत फायदा मिलेगी भविष्य में और हिंदी हमारी भारतीय भाषा है यह हमें कभी भूलना नहीं चाहिए और हिंदी को वजह से ही आज हम यहां खड़े हैं और आप यह नहीं भूलिए कि सबसे पहले हमें हिंदी भाषा ही सीखे उसके बाद हिंदी को वजह से ही हम अंग्रेजी भाषा सीखे हैं क्योंकि हर एक बच्चा जब पढ़ाई करने स्कूल जाएगा सबसे पहले का खा गा घा सकता फिर एबीसीडी की एकता है और हिंदी तो हम अंग्रेजी सीखें इसलिए अंग्रेजी सीखने के बाद हमें हिंदी भाषा को कभी भी भूलना नहीं चाहिए हमें हिंदी भाषा को हमेशा याद रखना चाहिए अगर यह करेंगे आपका भविष्य भी अच्छा होगा हिंदी का भविष्य अच्छा होगा हिंदी हमारी भारतीय भाषा है हमें इससे वैल्यू देना चाहिए हमें सिर्फ फालतू नहीं समझना चाहिए हमें हिंदी भाषा का आदर करना चाहिए मान सम्मान देना चाहिए आदिI