Hindi, asked by akshadabbhangre, 1 month ago

लॉटरी वरदान या अभिशाप इस विषयीपर निबंध लिखिए​

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Answered by akkaushal309
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लाटरी क्यों ? : आज जिधर देखिए उधर लाटरी की ही धूम है। आपको स्थान-स्थान पर लिखा मिलेगा या लाटरी के टिकट विक्रेताओं। को आवाज लगाते सनेंगे आप यहाँ से प्रत्येक राज्य के लाटरी के टिकट खरीद सकते हैं।’ क्या बच्चा, क्या जवान, वृद्ध, स्त्री, पुरुष। सभी पर मानो लाटरी का भूत सवार हो गया है। घर की कोई वस्तु भले न आए; परन्तु घर के प्रत्येक व्यक्ति के नाम प्रत्येक राज्य की। लाटरी का टिकट अवश्य आना चाहिए। आखिर इस लाटरी को आज के विशेष पढ़े लिखे लोग इतना क्यों पसन्द करते हैं ? इसमें कौन-सा जाद भरा है ? जिस प्रकार अशिक्षित लोग चूत में आनन्द लेते हैं, थोड़े से धन को दाँव पर लगा कर सेठ बनने की कल्पना करते हैं, उसी प्रकार पढ़े-लिखे लोग दो-चार रुपये के लाटरी के टिकट लेकर लखपति बनने के शेख चिल्ली जैसे महल बनाते हैं।

लाटरी का प्रारम्भ : भारत में यह लाट्री प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके रूपों में अवश्य भेद था। प्राचीन शक्ति परीक्षण प्रतियोगिता इसी का प्रारूप थी। आधुनिक लाटरी यूरोप में। प्रचलित डरबी लाटरी तथा भारत में प्रचलित घुड़दौड़ का परिष्कृत रूप है। भारत में उड़ीसा तथा सिक्किम की रैफल इसके आधुनिक इतिहास के प्रथम अध्याय हैं, इसके पश्चात् रैडक्रास ने भी लाटरी को प्रारम्भ किया।

तत्पश्चात् केन्द्रीय सरकार ने लाटरी के औचित्य को सही ठहराया और फिर तमिलनाडु, बिहार, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल, आसाम, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश आदि सरकारों ने विभिन्न लघु योजनाओं के नाम पर लाटरियाँ प्रारम्भ की। आरम्भ में इनके इनामों में एक लाख की राशि अधिकतम थी; किन्तु अभी तक अधिकतम राशि 21 लाख रु० घोषित की गई है। लाटरी में एक व्यक्ति लाटरी एजेन्ट से एक रुपये का टिकट खरीदता है। एक निश्चित तिथि को एक मनोनीत स्थान पर सरकारी अधिकारी बिके टिकटों पर नम्बर निकालते हैं। नम्बर निकालने के आधार पर समाचारपत्रों में परिणाम घोषित होते हैं और जिसका नम्बर निकलता है वह सम्बन्धित अधिकारी से अपना सम्बन्ध स्थापित कर इनाम की धनराशि प्राप्त कर लेता है।

लाटरी से हानियाँ : यह लाटरी प्रथा भी छूत का एक ढंग है। इससे मिले धन को व्यक्ति शराब आदि व्यसनों में दरुपयोग करता है। जनता की कमाई का लाभ जनता स्वयं नहीं पाती है। असामाजिक तत्त्व जाली टिकट छाप कर जनता से अनुचित धन कमाते हैं। एजेण्ट लोग भी जाली टिकिट बेचकर जनता का धन खींचते हैं।

उपसंहार : लाटरी से कमाई गई अपारिश्रमिक कमाई न व्यक्ति के लिए लाभदायक है न सरकार के लिये। अत: लाटरी कोई अच्छा व्यवसाय नहीं है। इससे तो ‘रक्षका: एवं भक्षका:’ की उक्ति चरितार्थ हो रही है। श्री अरविन्द के शब्दों पर ध्यान दें, “यदि आत्मा में दोष है तो रोग शरीर पर बार-बार आक्रमण करेंग; क्योंकि मानस के पाप शरीर पर पापों के छिपे कारण हैं।” इसलिए आप स्वयं सोचिए कि लाटरी वरदान है या अभिशाप

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