ले देकर जीना क्या जीना इसमें कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है
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भाव स्पष्टीकरण : कवि इसमें मानवता को अत्यधिक महत्व देते हुए दुष्टों के सम्मुख आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं। हमेशा समझौता करके, हार के, ले-देकर जीना, जीना नहीं है। कब तक तुम दुःख के आँसू पीते हुए, कष्ट सहते ही रहोगे? मानवता ने तुमको अमृत जल से सींचा है। तुम्हें सुख भोगने का अधिकार है। इसलिए शत्रुओं से डटकर मुकाबला करो, कायरता छोड़ दो, साहसी बनो।
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