ladka ladki ki Samanta ke baren mein sanvaad
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अगर हम प्राचीन काल की बात करें तो उस समय तो लड़को और लड़कियों में बहुत भेदभाव होता था| लोगों की सोच थी के एक पुत्र अवश्य होना चाहिए| उनका मानना होता था की पुत्र हमारे खानदान को आगे बढ़ाएगा| यह भी माना जाता था के बेटा हमारा अंतिम संस्कार करेगा| लेकिन हमारा तर्क यह है की इस प्रकार की सोच गलत थी|
अब सब समझते हैं की केवल लड़का होने से ही अंतिम संस्कार नहीं होगा|
मेरे इस लेख की महत्वपूर्ण बात है- मेरे पड़ोस की कहानी| हमारे पड़ोस में एक परिवार था, जिसमे चार सदस्य थे- माता, पिता, बेटा और बेटी| बेटे को दिल्ली के बाहर नौकरी मिल गयी, जिस वजह से वह दिल्ली में ही रहता था| उसी बीच उसके माता-पिता का देहांत हो गया| बेटा किसी कारणवश घर न आ सका, तो बेटी ने ही अंतिम संस्कार किया|
अब मैं एक और बात पर रौशनी डालना चाहूंगी| पहले की ये सोच गलत थी जहाँ बेटियों को बोझ समझा जाता था| उनके जन्म के समय ही उनकी शादी की जिम्मेदारियों के बारे में सोचा जाने लगता था|दूसरी तरफ, आज के समय में लड़कियाँ भी लडको की बराबरी करने लगी है| उनके समानअपना परिवार चलाने की क्षमता रखती हैं|
पहले लोगों की सोच थी के अगर लड़का पैदा हिगा तो उनके खानदान को आगे बढ़ाएगा, जबकि दूसरी और लड़की नाक कटवा देगी| माँ को हज़ार ताने सुनने पड़ते थे|
आज के समय में पहले से बहुत बदलाव आया है| अगर कहा जाये के लड़का नाम रोशन करेगा तो लड़कियां भी किसी से कम नहीं| आज लडकिया लडको के समान ही काम कर रही हैं|
यदि बात की जाए लड़कियों की शिक्षा की, तो पहले लड़कियां अशिक्षित हुआ करती थी, सिर्फ घर के कार्य करती थी| अगर कोई लड़की पढना चाहती थी तो सवाल रहता था की लड़की पढ़कर क्या करेगी? स्कूल की पढाई यदि करने दी जाती थी, तब भी कॉलेज की शिक्षा उन्हें नसीब नै होती थी|दूसरी ओर लडको को खूब पढ़ाया जाता थ| लड़कियों को शिक्षा न देने के कारण भी अनुचित होते थे- लड़की ने आखिर में शादी ही तो करनी है, लड़का लड़की से ज्यादा पढ़ा-लिखा ढूँढना पड़ेगा|
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