ladkiyo
par hone wale Atyachar par nibandh likhiye
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21वीं सदी के भारत में तकनीकी प्रगति और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा दोनों ही साथ-साथ चल रहे है। महिलाओं के विरुद्ध होती यह हिंसा अलग-अलग तरह की होती है तथा महिलाएं इस हिंसा का शिकार किसी भी जगह जैसे घर, सार्वजनिक स्थान या दफ्तर में हो सकती हैं। महिलाओं के प्रति होती यह हिंसा अब एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है और इसे अब और ज्यादा अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि महिलाएं हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं।
भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Violence against Women in India in Hindi)
निबंध 1 (250 शब्द)
भारतीय समाज के पुरुष-प्रधान होने की वजह से महिलाओं को बहुत अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। आमतौर पर महिलाओं को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है उनमे प्रमुख है दहेज़-हत्या, यौन उत्पीड़न, महिलाओं से लूटपाट, नाबालिग लड़कियों से राह चलते छेड़-छाड़ इत्यादि।
भारतीय दंड संहिता के अनुसार बलात्कार, अपहरण अथवा बहला फुसला के भगा ले जाना, शारीरिक या मानसिक शोषण, दहेज़ के लिए मार डालना, पत्नी से मारपीट, यौन उत्पीड़न आदि को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। महिला हिंसा से जुड़े केसों में लगातर वृद्धि हो रही है और अब तो ये बहुत तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं।
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा
हिंसा से तात्पर्य है किसी को शारीरिक रूप से चोट या क्षति पहुँचाना। किसी को मौखिक रूप से अपशब्द कह कर मानसिक परेशानी देना भी हिंसा का ही प्रारूप है। इससे शारीरिक चोट तो नहीं लगती परन्तु दिलों-दिमाग पर गहरा आघात जरुर पहुँचता है। बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि को आपराधिक हिंसा की श्रेणी में गिना जाता है तथा दफ़्तर या घर में दहेज़ के लिए मारना, यौन शोषण, पत्नी से मारपीट, बदसलूकी जैसी घटनाएँ घरेलू हिंसा का उदाहरण है। लड़कियों से छेड़-छाड़, पत्नी को भ्रूण-हत्या के लिए मज़बूर करना, विधवा महिला को सती-प्रथा के पालन करने के लिए दबाव डालना आदि सामाजिक हिंसा के अंतर्गत आती है। ये सभी घटनाएँ महिलाओं तथा समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहीं हैं।
महिलाओं के प्रति होती हिंसा में लगातार इज़ाफा हो रहा है और अब तो ये चिंताजनक विषय बन चुका है। महिला हिंसा से निपटना समाज सेवकों के लिए सिरदर्द के साथ-साथ उनके लिए एक बड़ी जिम्मेवारी भी है। हालाँकि महिलाओं को जरुरत है की वे खुद दूसरों पर निर्भर न रह कर अपनी जिम्मेदारी खुद ले तथा अपने अधिकारों, सुविधाओं के प्रति जागरूक हो।
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