Laghu katha on coronavirus in India.
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कोरोना महामारी के इस दौर में सबकी अपनी एक कहानी है, जो इस वायरस के खत्म होने के बाद हर किसी को याद रहेगी। कलाकार ओबी उवकेवे शिकागो की खाली सड़कों पर अपनी गोद में एक कैमरा लिए कोविड-19 के दौरान की जिंदगी को कैद करने के लिए चले जा रहे थे तभी उन्होंने कुछ देखा और वहीं रुक गए। चर्च से बाहर एक ताबूत ले जाया जा रहा था और कुछ शोकाकुल लोग उसके पास में ही खड़े थे जिनके चेहरे ढंके हुए थे।
Explanation:
मोहनलाल जांगिड़
लावारिस
पचपन साल के रामबाबू कोरोना की इस महामारी में कोरोना संक्रमित हो गए थे। क्वारंटीन, आइसोलेशन, हॉस्पिटल आदि के बाद वे चल बसे। बिना दवा-टीका इलाज! उफ्फ! तडफ़ तडफ़ के चल बसे।
रामबाबू ने उम्रभर बहुत परिश्रम से अपना कारोबार जमाया। आज धन दौलत, सुविधाएं, मकान आदि सभी कुछ हैं। अच्छा हंसता, बोलता और सुखी परिवार। माता-पिता, पत्नी, बच्चों सहित सात सदस्य हैं परिवार में।
उसी वार्ड से ठीक हुए पड़ौसी और ठीक हुए मरीज ने कहा, 'एक एक सांस के लिए वे बहुत तड़प रहे थे। वेंटिलेटर तो बस कुछ धड़कन जारी रख रहा था। अफसोस! मैं भी कुछ सहयोग नहीं कर पा रहा था।
शरीर मृत होने पर प्लास्टिक के काले कफन से लपेट कर ढक दिया है जहां आसपास हम जैसे मरीज थे।'
पर? पर आज रामबाबू का मृत शरीर ऐसे पड़ा है जैसे कोई लावारिस। ओह! कितनी विडम्बना है, रामबाबू करोड़पति है तथा परिवार होने पर भी आज निपट लावारिस।
अंतिम संस्कार में न अपने परिवार वाले हैं न ही मित्रों की भीड़। अपनी औलाद भी देख नहीं पा रही है चेहरा। पत्नी भी दूर। कोरोना महामारी ने यह कैसा ढंग दिखाया कि मित्र, समाज आदि छोड़ अपने परिवार से भी दूर कर दिया। उफ्फ! यह जीवन की हकीकत। कोरोना संक्रमित से मृत हर इंसान को लावारिस बना दिया। सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत ही अंतिम संस्कार कर दिये गए।