Hindi, asked by harshitbhati1289056, 9 months ago

lagukhata on Prakriti​

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Answered by haricharan26
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Answer:

बचपन मानवीय जीवन की वो अवस्था जहाँ से इन्सान की जीवन यात्रा की शुरुआत होती है. बचपन निर्दोष, मासूम, शरारत और प्यारी बातों से भरा होता है. बचपन उत्साह, जोश और ख़ुशी से भरा हुआ प्याला  है. 'किसान'  कम्पनी द्वारा प्रायोजित प्रतियोगिता ने मुझे अपने बचपन को फिर से एक बार याद करने का मौका दिया और मै अपनी यादों के दरीचों में एक बार झांकने   से खुद को नहीं रोक पाई. आइये मै आपको भी अपने बचपन की गलियों और चौबारे  में लिए चलती हूँ. 

प्रकृति  के साथ मेरी पहली मुठभेड़ तब हुई जब मै कोई ४-५ साल की रही होऊँगी , एक दिन मै अपनी घर के लगाये बगीचे में एक पौधे के पास खड़ी थी और जैसा  की अपनी शरारतों से न बाज आने की आदत थी, अतः आदतन मैंने पौधे की हरी-हरी पत्तियां  नोच दीं. ऐसा समझिये की पूरे पौधे का .क्रियाकर्म ही कर दिया था. ये सब चुचाप करने के बाद बगीचे से बाहर निकल रही थी की न जाने क्यों एक बार मुड़ कर देखने से खुद को नहीं रोक पाई और पौधे की दुर्दशा देखकर अपनी होने वाली दशा का अनुमान लगा लिया, अब माँ के हाथ से पीटने से कोई नहीं बचा  सकता था. 

 माँ ने बगीचा बड़े चाव से लगाया था, हमारे घर के बाहर बहुत ही छोटी सी ख़ाली पड़ी जगह पर उन्होंने बहुत सारे झाड़- पौधे गमलों और क्यारियां बनवाकर  लगवाये थे. मुझे आज भी याद है, वे एक माली से सब काम करवाया करती थीं और खुद भी उनकी देखभाल बहुत प्यार से करती थीं. उन्होंने गमले जिस तरह से सजाये थे और क्यारियां बनवाई थी वे किसी कलाकार की कृति ही जान पड़ती थी. जो भी हमारे घर आता वो बगीचे की और माँ की रूचि की तारीफ किये बिना नहीं रहता था. उस समय तो मै इन बातों को समझ नहीं पाती थी पर इतना याद है माँ हमेशा मौसमी फूलों के पौधे अधिक लगाया करती थीं. कुछ इनडोर-प्लांट और बोनसाई भी थे.

 खैर मै वापिस अपनी करिस्तानी पर आती हूँ. अपनी इस हरकत के बाद  मुझे लगा की अब माँ की पिटाई से बचने के  लिए क्या  करना  चाहिए ........? इसी उधेड़बुन में मै अपनी भैया से टकरा गई......उन्होंने तुरंत टोका," क्योंरी........ आफत की पुड़िया..!! कहाँ से आ रही है...........?" 

मैंने हडबडाकर उत्तर दिया," मैंने कुछ नहीं किया.......?" 

भैया ने मुझे गोद में उठा लिया और कहा," याने की आज भी कोई शरारत की है...........?"

 मैंने हाँ में सिर हिला दिया. अब भैया को मौका मिल गया क्योंकि मेरी कई शरारतों पर उन्हें डांट पड़ चुकी थी, 

उन्होंने माँ को आवाज लगे," माँ!! आपकी इस लाडली ने आज कोई हंगामा किया है............" 

माँ तुरंत बाहर   निकल कर आई और प्रश्नसूचक निगाहों से मेरी और देखा. मेरे मुंह से तुरन्त निकला, माँ! मैंने कुछ नहीं किया.....?" याने किया है', माँ ने कहा. मुझे लगा अब  पिटाई होकर रहेगी.....

 माँ ने कहा," बता दो..."

 "पिटोगी तो नहीं." मैंने कहा. जब माँ ने वायदा किया तो मै उन्हें गमले के पास ले गई. पौधे की दुर्दशा देखकर माँ की आँखों में आसूं आ गए, वे पौधों से वाकई बहुत प्यार करती थीं. मै ये देखकर सहम गई. माँ ने मेरी आँखों में डर देख लिया. उन्होंने मुझे गोद में उठाकर  मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरा मै समझ गई कि आज तो पिटाई से बच गए.

माँ ने मुझे गमलों के पास धीरे से खड़ा किया  और फिर मुझे समझाया कि पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जीवन होता है. मुझे सुनकर आश्चर्य हुआ,मै ने माँ से पूछा कि यदि इनमे हमारी तरह ही  जीवन है तो ये चलते फिरते क्यों नहीं. माँ का जवाब था ये चल-फिर नहीं सकते क्योंकि इनके हाथ-पैर नहीं हैं.

अब तो मेरे पास सवालों कि झड़ी थी जिसमें माँ भींगने लगी. मै ने माँ से सवाल किया कि ये खाना कैसे खाते हैं. माँ के पास मेरेहर  सवाल का जवाब था. उनसे मैंने जाना कि पेड़-पौधे कैसे भोजन और पानी ग्रहण करते हैं .उस दीं मैंने जाना कि पेड़ पौधे हमारे जीवन के लिए कितने जरुरी हैं और वे भी हमारी तरह दर्द या ख़ुशी महसूस करते हैं. उस दिन प्रकृति से मेरा प्रथम साक्षात्कार हुआ. पेड़-पौधे, हवा-पानी, मौसम सब  प्रकृति का हिस्सा हैं. और इन सबसे जरुरी जो बात समझ आई वह कि वर्षा ऋतू ही इस धरती के जीवन का आधार है और प्रकृति उस पर ही निर्भर   है.

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