Hindi, asked by vishusing1191, 10 months ago

Lakshmi Bai ka jeevan parichay in Hindi​

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Answered by Uditis
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मणिकर्णिका का जन्म एक मराठा परिवार में हुआ था। उनका विवाह 1842 में झाँसी के महाराजा राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था और वे झाँसी की रानी बनीं। उनकी शादी के बाद, मणिकर्णिका लक्ष्मीबाई बन गई, जिसका नाम देवी लक्ष्मी के सम्मान में रखा गया। अपनी शादी से पहले, वह चबीली (जिसका अर्थ "जॉली तरीके") था। 1851 में, रानी लक्ष्मीबाई का एक बेटा, दामोदर राव था। चार महीने की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। नवंबर 1853 में राजा की मृत्यु से एक दिन पहले, उन्होंने अपने चचेरे भाई के बच्चे को गोद लिया था। उनका नाम आनंद राव था, लेकिन उनके वास्तविक पुत्र के नाम पर उनका नाम दामोदर राव रखा गया। राजा ने भारत के ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखा जिसमें अनुरोध किया गया कि उनके जीवनकाल में उनकी मृत्यु के बाद उनकी विधवा को झांसी के शासक के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। उनके पति की मृत्यु के बाद ब्रिटिश सरकार के मुखिया ने उनके दत्तक पुत्र को राजा बनने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और झांसी पर अंग्रेजों का शासन था। यह "चूक का सिद्धांत" द्वारा किया गया था - अगर एक भारतीय शासक एक नर बच्चे के बिना मर जाता है तो उसका दत्तक पुत्र उसे सफल नहीं होगा; लेकिन उस राजा की निजी संपत्ति उसके दत्तक पुत्र को जाती है।

जून 1857 में झांसी में सभी अंग्रेजों को भारतीय सैनिकों द्वारा मार दिया गया था, जब तक कि अंग्रेज वापस नहीं आ जाते, रानी ने प्रशासन को अस्थायी रूप से संभाल लिया। ओरछा और दतिया की हमलावर सेनाओं को हराने के लिए उसे एक सेना का गठन करना पड़ा। मार्च 1858 में, सर ह्यू रोज के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना रानी से शहर को वापस लेने के लिए झाँसी आई थी जो अब स्वतंत्रता चाहती थी। झांसी को घेर लिया गया और मजबूत प्रतिरोध के बाद उसे ले जाया गया। शहर के कई लोग लड़ाई और उसके बाद मारे गए। रानी कालपी भाग गई और मराठा जनरल टंट्या टोपे के साथ संयुक्त रूप से ग्वालियर पर कब्जा कर लिया। कोठा की सीरई की लड़ाई में जिसमें उनकी सेना पराजित हुई थी, रानी लक्ष्मीबाई घायल हो गईं और 17/18 जून 1858 को उनकी मृत्यु हो गई।

Answered by ishusingh7862
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रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1835 को काशी के पुण्य व पवित्र क्षेत्र असीघाट, वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम 'मोरोपंत तांबे' और माता का नाम 'भागीरथी बाई' था। इनका बचपन का नाम 'मणिकर्णिका' रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को 'मनु' पुकारा जाता था। मनु की अवस्था अभी चार-पाँच वर्ष ही थी कि उसकी माँ का देहान्त हो गया। पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे। माता भागीरथी बाई सुशील, चतुर और रूपवती महिला थीं। अपनी माँ की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ बिठूर आ गई थीं। यहीं पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएँ सीखीं। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मोरोपंत मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया था। बाजीराव मनु को प्यार से 'छबीली' बुलाने थे।

पेशवा बाजीराव के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे। मनु भी उन्हीं बच्चों के साथ पढ़ने लगी। सात साल की उम्र में ही लक्ष्मीबाई ने घुड़सवारी सीखी। साथ ही तलवार चलाने में, धनुर्विद्या में निष्णात हुई। बालकों से भी अधिक सामर्थ्य दिखाया। बचपन में लक्ष्मीबाई ने अपने पिता से कुछ पौराणिक वीरगाथाएँ सुनीं। वीरों के लक्षणों व उदात्त गुणों को उसने अपने हृदय में संजोया। इस प्रकार मनु अल्पवय में ही अस्त्र-शस्त्र चलाने में पारंगत हो गई। अस्त्र-शस्त्र चलाना एवं घुड़सवारी करना मनु के प्रिय खेल थे।

समय बीता, मनु विवाह योग्य हो गयी। इनका विवाह सन् 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े ही धूम-धाम से सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। इस प्रकार काशी की कन्या मनु झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई। 1851 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। किन्तु 1853 तक उनके पुत्र एवं पति दोनों का देहावसान हो गया। रानी ने अब एक दत्तक पुत्र लेकर राजकाज देखने का निश्चय किया, किन्तु कम्पनी शासन उनका राज्य छीन लेना चाहता था। रानी ने जितने दिन भी शासन किया। वे अत्यधिक सूझबूझ के साथ प्रजा के लिए कल्याण कार्य करती रही। इसलिए वे अपनी प्रजा की स्नेहभाजन बन गईं थीं। रानी बनकर लक्ष्मीबाई को पर्दे में रहना पड़ता था। स्वच्छन्द विचारों वाली रानी को यह रास नहीं आया। उन्होंने क़िले के अन्दर ही एक व्यायामशाला बनवाई और शस्त्रादि चलाने तथा घुड़सवारी हेतु आवश्यक प्रबन्ध किए। उन्होंने स्त्रियों की एक सेना भी तैयार की। राजा गंगाधर राव अपनी पत्नी की योग्यता से बहुत प्रसन्न थे।

सन 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। सम्पूर्ण झाँसी आनन्दित हो उठा एवं उत्सव मनाया गया किन्तु यह आनन्द अल्पकालिक ही था। कुछ ही महीने बाद बालक गम्भीर रूप से बीमार हुआ और चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। झाँसी शोक के सागर में डूब गई। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर दरबारियों ने उन्हें पुत्र गोद लेने की सलाह दी। अपने ही परिवार के पांच वर्ष के एक बालक को उन्होंने गोद लिया और उसे अपना दत्तक पुत्र बनाया। इस बालक का नाम दामोदर राव रखा गया। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की दूसरे ही दिन 21 नवंबर 1853 में मृत्यु हो गयी।

रानी अत्यन्त दयालु भी थीं। एक दिन जब कुलदेवी महालक्ष्मी की पूजा करके लौट रही थीं, कुछ निर्धन लोगों ने उन्हें घेर लिया। उन्हें देखकर महारानी का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने नगर में घोषणा करवा दी कि एक निश्चित दिन ग़रीबों में वस्त्रादि का वितरण कराया जाए।.....

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