lalach Buri Bala Hai Hindi essay short
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Hey!! ☺
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लालच बुरी बला हैं!
अगर आज दुनिया मे किसी भी रिश्ते में लालच है तो यह रिश्ता ज्यादा समय नही चल पाता है, हमे लालच को त्याग देना चाहिए। जब भी कोई इंसान लालच करता हैं तो कही न कही उसका ही नुकसान होता हैं। लालच के कारण हमारी सम्पत्ति, ज़ायदाद, रिश्ते-नाते सभी बिगड़ जाते है, इसलिए हमें लालच को अपने जीवन के हिस्से से बिल्कुल पूरी तरह से निकाल देना चाहिए।
मीरजाफर ने देशभक्ति की जगह गद्दारी का रास्ता कोयों अख्तियार किया क्योंकि वह लोभी और लालची था। लोकोक्ति है- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पीव देख पराई चूपड़ी मत ललचावै जीभ। यदि इस लोकोक्ति के अनुसार उपरोक्त खलनायकों ने संतोषपूर्वक अपना जीवन बिताया होता तो आज मर जाने के बाद भी लोग उनके नाम पर थूकते नहीं।
अफसोस कि आज भी जीवन के हर क्षेत्र में हमें इन लोलुप तथा असंतुष्ट नायकों के आधुनिक संस्करण ढँढंने के लिए कुछ ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोगों के लिए पैसा ही ईश्वर है खुदा है धर्म है ईमान है पीर है पैगंबर है और अगर नहीं भी है तो इन सब में से किसी से कम नहीं है। मानवता की ऐसी-तैसी और रही देशभक्ति और जम्हूरियत तो वह गई तेल लेने।
समर जिस शाख पर देखा उचक कर उस पे जा बैठे।
सियासी जिंदगी है आजकल लंगूर हो जाना।
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Thanks!! ✌
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लालच बुरी बला हैं!
अगर आज दुनिया मे किसी भी रिश्ते में लालच है तो यह रिश्ता ज्यादा समय नही चल पाता है, हमे लालच को त्याग देना चाहिए। जब भी कोई इंसान लालच करता हैं तो कही न कही उसका ही नुकसान होता हैं। लालच के कारण हमारी सम्पत्ति, ज़ायदाद, रिश्ते-नाते सभी बिगड़ जाते है, इसलिए हमें लालच को अपने जीवन के हिस्से से बिल्कुल पूरी तरह से निकाल देना चाहिए।
मीरजाफर ने देशभक्ति की जगह गद्दारी का रास्ता कोयों अख्तियार किया क्योंकि वह लोभी और लालची था। लोकोक्ति है- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पीव देख पराई चूपड़ी मत ललचावै जीभ। यदि इस लोकोक्ति के अनुसार उपरोक्त खलनायकों ने संतोषपूर्वक अपना जीवन बिताया होता तो आज मर जाने के बाद भी लोग उनके नाम पर थूकते नहीं।
अफसोस कि आज भी जीवन के हर क्षेत्र में हमें इन लोलुप तथा असंतुष्ट नायकों के आधुनिक संस्करण ढँढंने के लिए कुछ ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोगों के लिए पैसा ही ईश्वर है खुदा है धर्म है ईमान है पीर है पैगंबर है और अगर नहीं भी है तो इन सब में से किसी से कम नहीं है। मानवता की ऐसी-तैसी और रही देशभक्ति और जम्हूरियत तो वह गई तेल लेने।
समर जिस शाख पर देखा उचक कर उस पे जा बैठे।
सियासी जिंदगी है आजकल लंगूर हो जाना।
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Thanks!! ✌
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