lekhak बाल गोविंद भगत को साधु ne मन कर grahast ko mante
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बालगोबिन भगत एक साधु के सामान जीवन व्यतीत करते थे। वे अपनी सभी वस्तु साहब की ही मानते थे । किसी की वास्तु को न छूते और न ही अपने व्यवहार में लाते । अपने खेत में पैदा अन्न को सर पर लादकर साहब के दरबार में ले जाते और वह से मिला अन्न को प्रसाद के रूप में लाते और उसी से अपना गुजारा चलाते
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Answer: बाल गोविंद भगत गृहस्थ थे। परंतु हम का समूचा व्यवहार वैराग्य भक्तों और साधु जैसा था। वे भक्तों की तरह अपने साहब असीम श्रद्धा रखते थे। इसीलिए उन्हें भगत कहना बिल्कुल सही है। वीर बैरागी साधु की तरह किसी की कोई चीज नहीं छूते थे। सबसे सच्चा और खराब व्यवहार करते थे। उनके मन में लोभ और अहंकार नाममात्र को भी नहीं था। यहां तक कि मैं अपनी फसलें भी पहले साहब को अर्पित करते थे। इसीलिए उन्हें भगत साधु कहना बिल्कुल सही है।
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