lekhak Bhagwana ki Maa Ki sahayata karna chahte Hue bhi Kyon Na Kar saka
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भगवान
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लेखक कहना चाहता है कि हमारी पोशाक और हमारी हैसियत हमें नीचे गिरने और झुकने से रोकती है। जिस प्रकार हवा की लहरें पतंग को एकदम सीधे नीचे नहीं गिरने देतीं, बल्कि धीरे-धीरे गिरने की इजाजत देती हैं, ठीक उसी प्रकार हमारी पोशाक हमें अपने से नीची हैसियत वालों से एकदम मिलने-जुलने नहीं देती। हमें उनसे मिलने में संकोच होता है।
भग्वाना एक गरीब व्यक्ति था उसकी मृत्यु के बाद उसकी मां दूसरे ही दिन खरबूजे बेचने के लिए
निकाल पड़ी।
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