Hindi, asked by tanishkaaaa, 8 months ago

lekhak ne aisa kyu khaa ki footpath par uske sameep baith sakne maii merii poshak hi vyavdhaan ban khadi hogyii(dukh ka adhikar)

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Answered by Anonymous
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Answer:

  • मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाजे खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम जरा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

  • बाज़ार में, फुटपाथ पर कुछ ख़रबूज़े डलिया में और कुछ जमीन पर बिक्री के लिए रखे जान पड़ते थे। ख़रबूज़ों के समीप एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी रो रही थी। ख़रबूज़े बिक्री के लिए थे, परंतु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? ख़रबूज़ों को बेचनेवाली तो कपड़े से मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी।

  • पड़ोस की दुकानों के तख़्तों पर बैठे या बाज़ार में खड़े लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे। उस स्त्री का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था? फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी पोशाक ही व्यवधान बन खड़ी हो गई।

  • एक आदमी ने घृणा से एक तरफ़ थूकते हुए कहा, 'क्या जमाना है! जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।'

  • दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, 'अरे जैसी नीयत होती है अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।'

  • सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली से कान खुजाते हुए कहा, 'अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, ख़सम-लुगाई, धर्म -ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।'

  • परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने कहा, 'अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो खयाल करना चाहिए! जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर ख़रबूज़े बेचने बैठ गई है। हजार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके ख़रबूज़े खा ले तो उसका ईमान- धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है!'
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