lekhak ne vyavharikta ko samaj ke liye acha kyu nahi mana?
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Lagta to hai sahi hai.
लेखक ने व्यवहारिकता को समाज के लिए उचित नहीं माना है क्योंकि व्यवहारवादी लोग हमेशा अपने कार्य के लिए सावधान रहते हैं। हर काम में लाभ-हानि का गणित लगाते हैं। वे जीवन में कई बार सफल भी होते हैं और दूसरों से आगे भी जाते हैं परन्तु स्थाई रूप से आगे नहीं बढ़ पाते ।ऐसे में समाज के उत्थान के बारे में नहीं सोचते ।व्यवहारवादी सोच के कारण लोगो का भला नहीं हो पाता।और विकास भी नीचे गिरता जाता है
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