Hindi, asked by birajdargouri52, 6 months ago

लघुकथा लेखन हिमाचल और में

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Answered by sunitadevinegi58
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लघुकथा आज हाशिये से निकलकर साहित्य की एक सशक्त विधा के रूप में दर्ज होने के बावजूद विसंगति यह देखने में आ रही है कि इसे अंतरंगता में समझने में अभी भी कई त्रुटियाँ हो रही हैं। अंग्रेजी में जहां हिन्दी की कहानी विधा को ‘शार्ट स्टोरी’ कहा जाता है वहीं कई लोग लघुकथा को ही ‘शार्ट स्टोरी’ की संज्ञा दे देते हैं। बीसवीं सदी की शुरूआत में जब हिन्दी साहित्य में कहानी अपनी जड़ें जमा रही थीं तब कुछ लेखकों ने आकार में कई छोटी कहानियां लिखीं पर उस दौरान अलग से लघुकथा एक अलग विधा के रूप में अस्तित्व में नहीं आई थी। देश-विदेश की अन्य कई भाषाओं में भी समय- समय पर कथ्य के फलक के अनुसार छोटी कहानियां लिखी गई हैं जिसमें भरपूर कथारस है। अपितु आठवें दशक के बाद लघुकथा ने धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बनानी शुरू की और अनगिनत लघुकथाकार उभर कर सामने आये।

अन्य भाषाओं में भी लघुकथा को नयी पहचान मिली। पंजाबी में इसे मिनी कहानियां कहा गया तो बांग्ला में अनुगल्प। कथा सम्राट मुंशी प्रेम चन्द और रवीन्द्र नाथ टैगोर जैसे स्वनामधन्य लेखकों की भी कई ऐसी लघुकथाएं हैं, हालांकि उनमें से कई लघुकथा के विद्वानों के अनुसार उस दायरे में नहीं आती। बहरहाल यह एक अलग मुद्दा है, पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज लघुकथा का अपना अलग रंग-रूप है, अपनी प्रासंगिकताहै। इसकी अनेक सृजनात्मक विशिष्टताएं, विधागत सामर्थ्य और रचनात्मक स्वरूप है। जिस प्रकार एक वृक्ष, एक पौधे और तृण का अपना अस्तित्व है, इसी तरह लघुकथा का उपन्यास , कहानी के बावजूद अपना एक धर्म है। अपने इसी धर्म के कारण यह बेजोड़ प्रभाव छोड़ती है।

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