Hindi, asked by rajaram1220, 2 months ago

लघु कथा- प्रकृति का दुख​

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Answered by InnocentWizard
44

होली का हुड़दंग समाप्त हुआ। सड़कों, बगीचों --वातावरण में रंग ही रंग बिखरे पड़े थे। रंगों से विभोर भावनाएं भी दिनचर्या की ओर मुड़ गई थीं। बलकार के बगीचे के कोने में कुछ फूल गर्दन उठाये चारों ओर निहार रहे थे। होली के रंग एक दूसरे पर डालते समय बहुत सी क्यारियां बलकार के दोस्तों के पैरों तले कुचली गईं थीं। कोने की ही कुछ क्यारियां बच पाई थीं। समीर के हल्के से झोंकें ने ज़मीन पर पड़े सूखे रंग थोड़े से उड़ा दिए थे। उसी की मस्ती में कोने के सुरक्षित एक फूल ने झूमते हुए कहा --"यार,आदमी अपने आप को क्या समझता है? कृत्रिम रंगों से अपने जीवन में रंग भरता है गले मिल मित्रता निभाता है और फिर एक दूसरे से गाली-गलौच , लड़ाई -झगड़ा, मार- पिटाई ,खून -खराबा यहाँ तक कि एक दूजे पर गोली तक दाग देता है।"

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Answered by bhartirathore299
23

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