लघुता ते प्रभुता मिलै, प्रभुता ते प्रभु दूरि।
चींटी शक्कर लै चली, हाथी के सिर धूरि ।।5।। (कबीर)
Doha ka wakhya
Answers
लघुता ते प्रभुता मिलै, प्रभुता ते प्रभु दूरि।
चींटी शक्कर लै चली, हाथी के सिर धूरि ।।5।।
भावार्थ ➲ कबीर कहते हैं कि हमें अपना बड़प्पन बनाए रखकर हमेशा छोटा बनकर रहना चाहिए। छोटा बनने का तात्पर्य विनम्र रहने से है। विनम्रता दिखाने से सभी लोगों में मान बढ़ता है। स्वयं को विनम्र और लघु बनाकर रखने से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। मन में अहंकार की भावना रखने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह चींटी विनम्र है, इसलिए उसे शक्कर मिलती है। हाथी को अपने विशाल आकार पर अहंकार होता है, इसी कारण वह अपनी सूंड से धूल उठाकर अपने सिर पर डालता रहता है। इसलिए छोटा होकर और विनम्र होकर बड़े ऊंचे लक्ष्य को पाया जा सकता है, अहंकारी बनकर सीधा पतन का रास्ता ही मिलता है।
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