लहूलुहान समाजवाद टीले पर खड़ा है किस पाठ से उदफधृत है ?
Answers
Answer:
I don't know about the problem
‘लहूलहान समाजवाद टीले पर खड़ा है’ यह कथन हरिशंकर परसाई द्वारा रचित निबंध “ठिठुरता हुआ गणतंत्र” से उद्धृत है।
Explanation:
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र” निबंध पाठ में हरिशंकर परसाई ने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य किया है। वे सरकारों के इस दावे पर व्यंग करते हैं कि देश के सभी राज्य प्रगति कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में देश के सभी राज्यों की दिखाई जाने वाली झांकियां अपने आप में परिहास का उदाहरण देती हैं। पिछले साल इन राज्यों में जो जो गलत कार्य हुए थे इन जातियों में उनको दिखाया जाना चाहिए था। लेकिन यह अपने विकास और अच्छाई को ही दिखाते हैं, अपनी बुराइयों को नहीं दिखाते।
परसाई जी कहते हैं कि 26 जनवरी को दिल्ली में निकलने वाली गणतंत्र दिवस की परेड पर अक्सर मौसम खराब ही रहता है। उस समय की शीत ऋतु होती है और बारिश भी अक्सर होती रहती है। सूरज बादलों में छुपा रहता है। हर कोई ठंड से ठिठुर रहा होता है। लेखक को यह गणतंत्रता भी ठंड से ठिठुरता हुआ दिखता है।
हर वर्ष यह घोषणा होती है कि समाजवाद आ रहा है, लेकिन आजादी के 72 साल होने के बाद भी समाजवाद अभी तक नहीं आया। लेखक एक सपना देखता है कि समाजवाद आ गया है, बस बस्ती के बाहर टीले पर खड़ा है। समाजवाद परेशान है, जनता भी परेशान है। राजनीतिक दलों में एक-दूसरे की टांग खींचने की आपाधापी मची है कि हम ही लाएंगे समाजवाद। जबकि समाजवाद लहूलुहान होकर टीले पर खड़ा है।