लहना सिंह पलटन में की
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पहले विश्वयुद्ध को भारत में बहुत याद नहीं किया जाता। लेकिन उस विश्वयुद्ध में भारतीय सिपाहियों का बहुत बड़ा योगदान था, जिसे विदेशियों ने ज्यादा पहचाना है। शायद इसकी वजह यह है कि भारतीय सिपाही विदेशी सत्ता के तहत लड़ रहे थे। इन भूले-बिसरे भारतीय बहादुरों को चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने 'उसने कहा था' कहानी में अमर कर दिया है। यहां इस कहानी के प्रकाशन का शताब्दी वर्ष है। सन् 1915 में ही गैलीपोली का युद्ध हुआ था, जिसमें हजारों भारतीय सिपाहियों ने हिस्सा लिया था। इसी प्रसंग में राजेंद्र धोड़पकर का आलेख
पहले विश्वयुद्ध की चर्चित घटनाओं में सन 1915 की गैलीपोली की मुहिम है, जिसकी सौवीं जयंती इस साल सारी दुनिया में मनाई जा रही है। गैलीपोली तुर्की का प्रायद्वीप है, जहां से मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने थल और जल सेना की जोरदार चढ़ाई तुर्की की राजधानी कुस्तुंतुनिया पर कब्जे के लिए की थी। लगभग आठ महीने तक चली यह मुहिम नाकाम रही थी। हालांकि विश्वयुद्ध के अंत में जर्मनी और उसके साथियों की हार हुई। गैलीपोली की लड़ाई ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये देश कुछ साल पहले ही आजाद हुए थे और इस जोरदार लड़ाई में इन देशों की सेनाओं की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी। गैलीपोली ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय पहचान से जुड़ गया।