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पा
पप्पा प्रता
र ५जिए
,
भारत एक खोज पुस्तक की रचना पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने किया था । जब वे नौवीं बार जेल गए
तब उन्होंने अहमदनगर किले में बंदी जीवन बिताते हुए 13 अप्रैल 1944 को बीस महीनों के अंतर्गत अपने
विचारधारा को इस पुस्तक के माध्यम से हमें यह संदेश देने की कोशिश की है कि जीवन में एक जैसा
समय नहीं रहता । जिस प्रकार अमावस्या के बाद पूर्णिमा आने से है उजाला छा जाता है उसी प्रकार दुख
के बाद सुख आता है । किले मे समय बिताते हुए नेहरू जी ने अपने स्वभानुसार घंटों तपती धूप में
बागवानी किया करते थे । उन्हें खाली बैठना पसंद नहीं था । फूलों की क्यारियाँ बनाते सारी धरती
पत्थरों, पुराने मलबे से भरी जमीन को अपनी कठिन परिश्रम से उपजाऊ बना डाला । नेहरू जी का
कहना है कि अहमदनगर की ऐतिहासिक घटनाओं की दृष्टि से कोई विशेष अहनियत नहीं है । परंतु वहाँ
की चाँद बीबी की कहानी प्रसिद्ध है जिसने अकबर की शाही सेना से अपने कीले की रक्षा की थी । नेहरू
जी जेल की स्थानों की खुदाई करके नई - नई वस्तुओं की खोज करना चाहते थे । परंतु जेल के
अधिकारी ने उन्हें ऐसा करने से मना किया । इसलिए उन्होंने कुदाल छोड़करें कलम पकड़ ली और देश
आजाद होने तक लिखते रहने का प्रण किया ।
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itta bada question ka 5 points sirf.
no bro, that's not going to happen
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