life poem appreciation in a paragraph format
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"Life by Charlotte Bronte comprises of three stanzas and each stanza she tries to bring out a beautiful meaning, a message. ... In the second stanza she talks about the happy and the zealous parts of life. The last stanza brings out the anguish of death taking away one's loved one.
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- जन्नत का जमीन पर ही निर्माण कर लिया
- जिस जिस ने भी खुद को इंसान कर लिया
- उठाकर किसी गरीब लाचार को जमीन से
- खुद को जमीन से ऊँचा आसमान कर लिया
- अ मानव तुझे तो बनाकर भेजा था भगवान जमीन का
- क्यूं तूने खुद को शैतान सा बेईमान कर लिया
- कोसते रहते हैं लोग हर वक्त दूसरों की शौहरतों को
- अच्छे भले जन्नत से जिस्म को शमशान कर लिया
- अच्छे भले जन्नत से जिस्म को शमशान कर लियापाल लिया समझो उसने एक नर्क अपने भीतर
- अच्छे भले जन्नत से जिस्म को शमशान कर लियापाल लिया समझो उसने एक नर्क अपने भीतरजिस जिस ने भी अपनी कामयाबियों पर गुमान कर लिया
- करके हर अपने पराये की दिल से मदद
- मुश्किल जीवन को हमने बड़ा आसान कर लिया
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वार
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लिया
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लियाहटाता गया मालिक उसकी राह से हर कांटे को
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लियाहटाता गया मालिक उसकी राह से हर कांटे कोजिस जिस ने खुद को उसकी खातिर परेशान कर लिया
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लियाहटाता गया मालिक उसकी राह से हर कांटे कोजिस जिस ने खुद को उसकी खातिर परेशान कर लियाकरके किसी संगदिल सनम से इश्क का इजहार
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लियाहटाता गया मालिक उसकी राह से हर कांटे कोजिस जिस ने खुद को उसकी खातिर परेशान कर लियाकरके किसी संगदिल सनम से इश्क का इजहारहमने ठीक ठाक चलती सांसो को तूफान कर लिया
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लियाहटाता गया मालिक उसकी राह से हर कांटे कोजिस जिस ने खुद को उसकी खातिर परेशान कर लियाकरके किसी संगदिल सनम से इश्क का इजहारहमने ठीक ठाक चलती सांसो को तूफान कर लियानही बैठती सरस्वती माँ फिर कभी उसकी जिव्हा पर
- जब भी करना चाहा बेदर्द तकदीर ने हम पर वारहमने किसी मासूम बालक सा खुद को नादान कर लियाहटाता गया मालिक उसकी राह से हर कांटे कोजिस जिस ने खुद को उसकी खातिर परेशान कर लियाकरके किसी संगदिल सनम से इश्क का इजहारहमने ठीक ठाक चलती सांसो को तूफान कर लियानही बैठती सरस्वती माँ फिर कभी उसकी जिव्हा परजिस जिस ने अ नीरज लिखने पर अभिमान कर लिय
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